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________________ १ कर्ममुक्ति के लिए चार तत्त्वों का ज्ञान आवश्यक बन्ध एवं मुक्ति का विज्ञान है कर्मविज्ञान आपने देखा होगा कि मकड़ी अपना जाला स्वयं बुनती है और फिर उसमें स्वयं ही फँसती है। बाद में वह स्वयं ही जाले को तोड़कर बाहर निकलती है । इसी प्रकार संसारी जीव स्वयं ही कर्मों का जाल बुनता है और स्वयं ही उसके बन्धन में फँसता है और भेदविज्ञानं सुदृढ़ होने पर स्वयं ही उसमें से मुक्त होता जाता है और एक दिन कर्मों के बन्धनरूपं जाल से पूर्णतया मुक्त हो जाता है। कर्मविज्ञान में यह सब विस्तृत रूप से बताया गया है कि मनुष्य या सभी संसारी जीव कर्मों को किस प्रकार आकर्षित करते हैं और किस प्रकार किन-किन कारणों से वे स्वयं (आत्मा) कर्मों से बँधते हैं ? तत्पश्चात् मोह और कषायों की मन्दता होने से राग-द्वेषवश नये आते हुए कर्मों को प्रविष्ट होने से कैसे रोकते हैं ? साथ ही पुराने बँधे हुए कर्मों को उदय में आने पर अथवा उदीरणा करके उदय में लाकर किस-किस अवलम्बन से समभावपूर्वक शान्ति और धैर्य से कैसे-कैसे भोगकर उन्हें समाप्त (निर्जरा) करते हैं तथा राग-द्वेष, काम और मोह के एवं कषायों के सर्वथा क्षीण होने पर किस प्रकार वे चार घातिकर्मों को नष्ट कर देते हैं ? उसके पश्चात् शेष चार अघातिकर्मों को किस प्रकार नष्ट करके कर्मों से सर्वथा मुक्त (मोक्षगामी), सिद्ध, बुद्ध एवं परिनिर्वृत बन जाते हैं ? इस प्रकार कर्मविज्ञान विविध कर्मों के आस्रव, बन्ध और उनके विविध कारणों की मीमांसा ही नहीं बताता, अपितु कर्मों के आगमन को रोकने, कर्मों से आंशिक रूप से मुक्त होने तथा सजातीय कर्मों के अनुभाग (रस) और स्थितिबन्ध में परिवर्तन करने के नियमों की सारी प्रक्रिया भी बताता है, अन्त में चार घातिकर्मों तथा चार अघातिकर्मों का क्षय करके कर्मों से आत्मा को सर्वथा मुक्त होने का उपाय भी बताता है। कर्मविज्ञान द्वारा प्रतिपादित सभी तथ्य एवं सिद्धान्त महापुरुषों द्वारा अनुभूत, दृष्ट एवं सक्रिय रूप से मानव जीवन में क्रियान्वित और सरलतम तथा युक्तिसंगत हैं।
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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