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ॐ संवर और निर्जरा की जननी : भावनाएँ और अनुप्रेक्षाएँ * १८९ 8
अनेक वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक भी इस पद्धति का अनुसरण करते हैं। इसमें सजेशन आत्मलक्षी-दृष्टि से दिया जाता है। वह भी दो प्रकार से दिया जाता है“या तो व्यक्ति स्वयं को सजेशन (सुझाव) देता है या फिर अन्य व्यक्ति के सजेशन को सुनता है।" अनुप्रेक्षा-प्रयोग मुख्यतया स्वयं को स्वयं के द्वारा सजेशन (सुझाव) देने की पद्धति है। किसी मनुष्य की आदत चाहे लड़ने-झगड़ने की हो, चाहे चोरी, जारी या झूठफरेब करने की हो अथवा बुरे आचरण और व्यवहार की हो; अनुप्रेक्षा की इस पद्धति से जटिल से जटिल आदत को बदला जा सकता है, स्वभाव-परिवर्तन भी बिना किसी पुस्तक या उपकरण के किया जा सकता है।
अनुप्रेक्षा ब्रेन वाशिंग का काम कैसे करती है ? आजकल विदेशों में प्रायः राजनैतिक क्षेत्र में विचार-परिवर्तन या भावना बदलने के ब्रेन वाशिंग का प्रयोग भी सफलतापूर्वक किया जा रहा है। अनुप्रेक्षा का ही पूर्वरूप भावना है। भावनापूर्वक अनुप्रेक्षा के द्वारा मस्तिष्क की धुलाई का काम बहुत आसानी से हो जाता है। एक ही शुभ भावना को पुनः-पुनः दोहराते जायें, उसका मन ही मन रटन या जप करते रहें तो एक क्षण ऐसा आता है, जब पुराने अशुभ विचार छूट जाते हैं और उनकी जगह नये शुभ विचार चित्त में जड़ जमा लेते हैं। अर्थात् ज्ञात मन में जो अशुभ विचार एवं संस्कार (कषायादि विभाव) भरे पड़े हैं, उन्हें शुभ विचारों का शुभ भावनापूर्वक बार-बार अनुप्रेक्षण करने से वे पुराने अशुभ विचार और कुसंस्कार विदा हो जाते हैं, उनकी जगह अज्ञात मन में शुभ विचार और सुसंस्कार स्थापित हो जाते हैं।
. शुभ भावनात्मक प्रार्थना या जाप से हृदय-परिवर्तन - अमेरिका के एक शहर में प्रभु-भक्त गेस्टर रोज चर्च में जाकर शुभ भावनात्मक प्रार्थना किया करता था-"O God, save me from sins.” (हे प्रभु ! मुझे पापों से बचाइये।) घर में भी वह नियमित रूप से प्रतिदिन आधा घण्टे तक यही प्रार्थना करता था। उसका पुत्र रोजर पिता की इस भक्ति को पागलपन समझता था। परन्तु पिता को यह विश्वास था कि इस पुनः-पुनः भावनात्मक जाप से मेरा पुत्र एक दिन । अवश्य ही आस्तिक बन जायेगा। जैसे सूर्य के ताप से गीली जमीन सूख जाती है,
वैसे भावनात्मक जाप के ताप से पाप सूख जाते हैं, जीवन में पवित्रता का प्रकाश । फैलने लगता है। पाप से मुक्त होने की इस भावना से प्रतिदिन जाप करने से गेस्टर
के जीवन में पवित्रता विकसित होने लगी। उसके हृदय में भी दृढ़ विश्वास हो गया । कि शुभ भावनात्मक जाप में चाहे जैसे पापी को पवित्र करने की शक्ति है। अतः पूर्ण । श्रद्धापूर्वक तीन वर्ष जाप करने के पश्चात् उसने अपने पुत्र को उक्त जाप में शामिल १. 'अमूर्त चिन्तन से भावांश ग्रहण. पृ. ८