SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ® संवर और निर्जरा की जननी : भावनाएँ और अनुप्रेक्षाएँ * १८७ * होती है। निगृहीत मन की ही शक्ति प्रचण्ड अनुप्रेक्षात्मक संकल्प के रूप में प्रकट होती है। जिससे एक ही स्थान पर बैठे-बैठे ही दूरवर्ती व्यक्तियों को प्रभावित करना तथा जड़ वस्तुओं में परिवर्तन करना, हलचल पैदा कर सकना सम्भव है। जैनकथाओं में ऐसी शीलवती सती नारियों के उदाहरण आते हैं कि वे आपद्ग्रस्त होकर ज्यों ही किसी वैमानिक देवी या देव का स्मरणात्मक अनुप्रेक्षण करतीं, त्यों ही वे सहायता के लिए शीघ्र ही पहुँच जाते। 'अजपा जाप' से यानी मानसिक मंत्र-जाप से बहुत बड़ी शक्ति पैदा हो जाती है। अनुप्रेक्षा में और क्या है-मानसिक शक्ति का ही चमत्कार है कि इससे मनुष्य की गलत आदतें, स्वभाव में परिवर्तन कषायादि के आवेग से उत्पन्न भावनात्मक रोग की चिकित्सा, शारीरिक-मानसिक रोग की चिकित्सा अनुप्रेक्षा की प्रबल भावधारा द्वारा की जा सकती है। ब्रिटिश शासनकाल में मर जोन वुडरफ' कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ मजिस्ट्रेट थे। उन्होंने एक संस्मरण में लिखा है कि एक बार वे एक भारतीय मित्र के साथ ताजमहल के संगमरमर के फर्श पर बैठे थे। बातचीत के सिलसिले में संकल्प-शक्ति की चर्चा चल पड़ी। वुडरफ को इस पर विश्वास नहीं था। उनके भारतीय मित्र ने कहा-मानसिक संकल्प-शक्ति का एक छोटा-सा प्रमाण तो मैं भी दे सकता हूँ। “सामने जो लोग बैठे हैं, उनमें से आप जिसे कहें मैं उठा हूँ और उसे जहाँ कहें वहाँ बिठा दूँ।" वुडरफ ने उनमें से एक व्यक्ति को चुना और उसे अमुक स्थान पर बिठा देने को भी कहा। मित्र ने अपनी मानसिक संकल्प-शक्ति का प्रयोग किया। फलस्वरूप वह व्यक्ति एकदम उठा और वुडरफ द्वारा बताये गये स्थान पर जा बैठा। यह था मानसिक संकल्प-शक्ति का चमत्कार !२ - डॉ. वेन्शनोई भी मानसिक संकल्प के द्वारा बिना स्पर्श किये वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर खिसका देते थे। ऐसा विलक्षण मानसिक सामर्थ्य उनमें था। रूसी महिला ‘रोजा मिखाइलोवा' जड़ वस्तुओं में हलचल पैदा कर देती थी अपनी इच्छा-शक्ति द्वारा। एक बार उन्होंने पत्रकारों को इच्छा-शक्ति का चमत्कार बताया। उन्होंने दूर मेज पर रखी हुई डबलरोटी को अनिमेष दृष्टि से देखा और जैसे ही उसने मुख खोला, दूर पड़ी हुई डबलरोटी अपने आप मेज पर से उठकर मिखाइलोवा के मुँह में जा पहुँची। अमेरिकन युरी गैलर अपनी प्रबल इच्छा-शक्ति से ज्यों ही कुछ भावना करता, दूर रखे चम्मच तथा लोहे की छड़ों को तोड़ देता था। मन को एकाग्रतापूर्वक एक विषय में केन्द्रित करना ही तो अनुप्रेक्षण है। १. 'आगममुक्ता' से भावांश ग्रहण, पृ. १४२ २. 'अखण्ड ज्योति, दिसम्बर १९८१' के अंक से भाव ग्रहण, पृ. ३४-३५ ३. (क) वही, पृ. ३४
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy