________________
ॐ १७४ 8 कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ
(८) उत्तम त्याग : एक अनुचिन्तन त्याग धर्म की महिमा और परिभाषा
त्याग आध्यात्मिक जीवन के लिए ही नहीं, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में सुख-शान्ति प्राप्त कराता है। त्याग से तुरंत शान्ति मिलती है। भोग और राग में दुःख है, त्याग में सुख है। किन्तु किसी को कुछ वस्तु दे देना, बिना प्रयोजन ही अपने सम्प्रदाय, पन्थ और मत के प्रचार के लिए कुछ दे देना, त्याग नहीं होता, वह दान भी तभी होता है, जब निःस्वार्थभावं से, केवल अपने अनुग्रह के लिए योग्य पात्र को विधिपूर्वक तदनुकूल द्रव्य दिया जाए। त्याग और दान में काफी अन्तर है, त्याग तो अनुपयोगी, अहितकारी वस्तु का किया जाता है, मगर दान जो उपकारी या हितकारी है, उस वस्तु का दिया जाता है। त्याग पूर्ण स्वाधीन है, जबकि दान में कम से कम देने वाला और लेने वाला, दो व्यक्ति चाहिए। ___ दान से त्याग बढ़कर है। त्याग की परिभाषा 'प्रवचनसार तात्पर्य वृत्ति' में इस प्रकार की गई है-निज शुद्धात्मा के ग्रहणपूर्वक बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से निवृत्ति त्याग है। ‘समयसार' के अनुसार-प्रत्याख्यान त्याग तब होता है, जब अपने से भिन्न सभी पर-पदार्थों को ये पर हैं', इस प्रकार जानकर जब त्याग किया जाता है, तब वह प्रत्याख्यान त्याग होता है। 'राजवार्तिक' में त्याग का लक्षण किया हैसचेतन और अचेतन परिग्रह से निवृत्ति त्याग है।' . त्याग क्या है, क्या नहीं ? दान और त्याग में अन्तर ___ एक बात और स्पष्टतया समझ लें-त्याग पर-द्रव्यों का नहीं, अपितु पर-द्रव्यों के प्रति आत्मा में होने वाले राग, द्वेष, मोह का होता है। पर-द्रव्य अपने हैं ही कहाँ, जो उनका त्याग किया जाए? उन्हें दर्शनमोहवश जीव ने अपने जाने-माने हैं और चारित्रमोहवश उनके प्रति राग-द्वेष किया है, दरअसल इन्हीं विकतियों (मोह, राग और द्वेष) को छोड़ना है, वही त्याग है। अतः त्याग ‘पर' को 'पर' जानकर किया जाता है, दान में यह बात नहीं है। परानुग्रह बुद्धि से अपनी वस्तु का अर्पण करना-व्युत्सर्जन करना दान है। दान में मुख्यतया परोपकार का भाव रहता है १. (क) निजशुद्धात्म-परिग्रहं कृत्वा बाह्याभ्यन्तरपरिग्रह-निवृत्तिस्त्यागः।।
-प्रवचनसार ता. वृ., गा. २३९ (ख) सव्वे भावे जम्हा पच्चक्खाई परे त्ति णाइणं। तम्हा पच्चक्खाणं णाणं णियमा मुणेयव्वं॥
-समयसार ३४ (ग) परिग्रहस्य चेतनाचेतनलक्षणस्य निवृत्तिस्त्यागः इति निश्चीयते। -राजवार्तिक ९/६