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७२ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
है। अपनी भूल के कारण उसने दर्शनावरण कर्म के विपाक को निमित्त प्रदान कर दिया । किन्तु कई बार प्राकृतिक वातावरण आदि के कारण विपाक का उदय हो जाता है । जैसे- आसमान में बादल छाये हुए हैं, रिमझिम वर्षा हो रही है। ऐसे वातावरण के निमित्त से आलस्य आने लगा, नींद ने आ घेरा। इस प्राकृतिक वातावरण (परत: उदीरणा ) के निमित्त से दर्शनावरणीय कर्म के विपाक को मौका मिल जाता है। मरुस्थल का एक व्यक्ति चिलचिलाती धूप में बाहर निकला। किसी आवश्यक कार्य से उसे कहीं जाना था। किन्तु सनसनाती हुई गर्म हवाएँ चल रही थीं । उसे लू लग गई। यहाँ पर निमित्त और स्वनिमित्तक दोनों कारणों से असातावेदनीय के विपाक को मौका मिल गया ।
निष्कर्ष यह है कि वे कर्म तीन कारणों से फलभोग (विपाक) के योग्य बन. जाते हैं- (१) या तो स्वयं उदीर्ण हों, (२) या पर के द्वारा उदीर्ण हों, अथवा (३) स्व-पर दोनों के द्वारा उदीर्ण हों। दूसरे शब्दों में मनुष्य के अपने प्रमाद, गफलत या भूल के कारण से; दूसरे, प्राकृतिक वातावरण, या किसी अन्य कारण से, और तीसरे, स्व और पर दोनों के संयुक्त कारण से विपाक को उदित होने का अवसर मिल जाता है।
परिस्थिति, वातावरण, विशिष्ट व्यक्ति आदि से प्रभावित हो जाता है
इसलिए यह कहना ठीक होगा कि जीवों को उपादान के अतिरिक्त निमित्त भी प्रभावित करते हैं। जैसे- शरीर की लम्बाई-चौड़ाई और रूप-रंग क्षेत्रीय (भौगोलिक) वातावरण से प्रभावित होते हैं। मानसिक उतार-चढ़ाव बाह्य सम्पर्कों से प्रभावित होते हैं । विचार भी प्राय: बाह्य दृश्यों और आदर्श या विशेष व्यक्तियों के कारण बनते हैं । कोई भी व्यक्ति परिस्थिति, वातावरण या विशिष्ट व्यक्ति (द्रव्य) के प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकता; जो उसके प्रभाव क्षेत्र में हो। कहीं ठंडी हवा, आँधी, तूफान चलते हैं तो आदमी कांप उठता है । यह कम्पन पुद्गल हेतुक है। कड़ी धूप में पसीना टपकने लगता है। यह भी सहेतुक है। अपने मन के प्रतिकूल कोई संयोग या व्यक्ति मिलता है तो मनुष्य चिन्तित - व्यथित हो जाता है। मनोऽनुकूल साधन-सामग्री • मिल जाती है तो मनुष्य हर्षावेश में मत्त हो जाता है। एक अत्यन्त निर्धन व्यक्ति को किसी ने खबर दी - तुम्हारे नाम की लॉटरी में दो लाख रुपयों का इनाम खुला है । यह सुनते ही वह हर्षावेश में मत्त होकर बोला- हैं दो लाख ! इतना कहते ही धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा और इस लोक से कूच कर गया । यह सब भावों के निमित्त से विपाक का उदीरण (फलभोग) हुआ। कभी-कभी भय, उल्लास, तनाव, आवेश, सघन शोक आदि भावों के कारण मन उद्विग्न, अशान्त, बेचैन हो जाता है। मनुष्य
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