________________
| विपाक पर आधारित चार कर्मप्रकृतियाँ
कर्मों की प्रकृतियाँ : विपाक के आधार पर _एक बगीचे में आम, अंगूर, अनार, चीकू, नींबू, सन्तरे आदि विविध फलों के पेड़ हैं। उस बगीचे में कई माली रखे हुए हैं। उन्होंने समय-समय पर जैसे बीज बोये होंगे, उनके फल भी वैसे ही आते रहते हैं। उन सभी वृक्षों के फल अपनेअपने समय पर जब पक जाते हैं, तब अपने-आप फल या तो नीचे गिर जाते हैं, या बगीचे के कर्मचारी उसे तोड़ लेते हैं। परन्तु यह निश्चित है कि जैसे-जैसे बीज बोये जाते हैं, वैसे-वैसे ही उसके फल, कोई जल्दी और कोई देर से मिलते हैं। यदि कोई नीम का बीज बोकर आम के मधुर फल पाना चाहे तो नहीं पा सकता। .
.: विपाक का स्वरूप और परिणाम ___इसी प्रकार संसाररूपी बगीचे में विविध प्रकार के जीवरूपी माली अपनी
अपनी गति-मति-अनुसार कर्म-बीज बोते रहते हैं। वे पूर्वबद्ध कर्म जब परिपक्व होकर फल देने के अभिमुख होते हैं, तब उन्हें कर्मविज्ञान की भाषा में विपाक कहते हैं। 'सर्वार्थसिद्धि' के अनुसार-विशिष्ट या विविध (नाना प्रकार के) कर्मों के पाक का नाम विपाक है। ऐसे कर्मों का विपाक जीव के द्वारा किसी कार्य के निमित्त से पहले बांधे हुए शुभ-अशुभ-भाव (परिणाम), पुरुषार्थ, तीव्र-मन्द आदि भावास्रव विशेष के अनुरूप विशिष्ट प्रकार का होता है। उदाहरणार्थ-किसी व्यक्ति ने
१. "विशिष्टो नानाविधो वा पाकः विपाकः। पूर्वोक्त कषाय-तीव्र-मन्दादि भावात्रक
विशेषाद् विशिष्टः पाको विपाकः। अथवा द्रव्य-क्षेत्र-काल-भव-भाव-लक्षणनिमित्त-भेद-जनित-वैश्वरूपयो नानाविधः पाके विपाकः।" असावनुभव इत्याख्यायते।
-सर्वार्थसिद्धि ८/२१/५९८/३
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org