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ਤਕ ਗੀਤ ਵੇਖ ਕੇ ਕਿਥਿਖੁ ਗ
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भावनाएँ घुस गईं हैं। त्याग के नाम पर दिखावा और आडम्बर प्रचुर मात्रा में समाज में व्याप्त है। इसलिए प्रशस्तराग के मामले में बहुत सावधानी रखने की जरूरत है।
प्रशस्तराग अपनाने से पहले अतः प्रशस्तराग अपनाने से पहले अप्रशस्त राग छोड़ना होगा। देव, गुरु और धर्म के प्रति प्रशस्त राग लाने के लिए कुदेव, कुगुरु और अधर्म से तो बचना ही होगा, अर्थात् इसके लिए निम्रोक्त चतुर्भंगी का चिन्तन करना ठीक होगा-(१) रागी का त्याग, (२) राग का त्याग, (३) त्यागी के प्रति राग और (४) त्याग के प्रति राग। जो देव रागी और द्वेषी हो, भले ही वे अपनी परम्परा से मान्य हों, उनसे स्वार्थ सिद्ध होता हो, वह तथाकथित देव स्वयं को न मानने वाले के प्रति द्वेष रखता हो
और वध करता हो, वह रागी-द्वेषी देवं है, उसका त्याग होना जरूरी है। साथ ही उस सच्चे देव के नाम पर भी सांसारिक स्वार्थ, लोभ, प्रसिद्धि, आडंबर आदि राग हो तो उसका त्याग भी जरूरी है। इसी प्रकार त्यागियों में भी त्याग के नाम पर आडम्बर, द्वेष, प्रसिद्धि कामना, लोकैषणा, लालसा आदि हो तो उस तथाकथित त्यागी का मुख राग की ओर है, त्याग की ओर नहीं, यह समझकर ही सच्चे त्यागी के प्रति राग और जिस धर्म के साथ त्याग, संयम, तप, अहिंसादि न हो, उस रागमय धर्म का भी त्याग करके त्याग के प्रति स्वपर कल्याण कामना से युक्त राग होना चाहिए। तभी गुरु और धर्म के प्रति प्रशस्त राग कहा जाएगा। अतः रागी या राग का त्याग करना, यह प्रशस्त राग का साध्य है और त्यागी तथा त्याग के प्रति राग, यह उसका साधन है; इस सूत्र को हृदयंगम कर लेना चाहिए। अतः प्रशस्त राग लाने का सक्रिय उपाय है-अप्रशस्तराग जहाँ भी हो, उसे छोड़ना। देव के प्रति प्रशस्त राग लाने के लिए तथाकथित देव का त्याग, गुरु के प्रति प्रशस्त राग लाने के लिए तथाकथित गुरु का त्याग, मोक्षसाधक धर्म के प्रति प्रशस्त राग लाने हेतु. धर्मसम्प्रदायों में घुसे अधर्म या स्वयं के जीवन में विद्यमान अधर्म को छोड़ना जरूरी है। संक्षेप में-मोक्ष का प्रशस्त राग जगाने के लिए संसार का-स्वार्थयुक्त कामनानामनायुक्त राग घटाना ही पड़ेगा। वीतराग-परमात्मा के प्रति प्रशस्त राग जगाने के लिए सगे-सम्बन्धी, परिवार, सम्प्रदाय, धन, जाति आदि सांसारिक राग घटाना ही पड़ेगा। अन्यथा प्रशस्त राग जीवन में आ नहीं पाएगा। .. देव, गुरु और धर्म के प्रति प्रशस्तराग बढ़ाने के लिए मुमुक्षा तथा आत्मार्थीपन होना जरूरी है। संसार का या सासांरिक-लौकिक राग से कषायों की वृद्धि होती है। सद्देव, सद्गुरु और सद्धर्म के प्रति प्रशस्तराग होने से कषाय कम होंगे। .
१. कर्म की गति न्यारी से सार-संक्षेप, पृ. २३, २४
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