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५८६ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
निषेधक होती है।'' इसीलिए आचार्य नमि ने रागद्वेष को बन्धनकारक इसलिए बताया है कि 'रागद्वेष के द्वारा अष्टविध कर्मों का बन्धन होता है।'२
सर्वप्रथम रागबन्ध को ही लीजिए। जब तक रागभाव रहता है, चाहे वह प्रशस्त ही हो, तब तक वीतरागता या केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। आचार्य जिनदास महत्तर के अनुसार "जिसके द्वारा आत्मा कर्म से रंगा जाता है, वह मोह की परिणति राग है।" यही कारण है कि जब तक उच्चतम साधक गणधर गौतम स्वामी को अपने परमगुरु वीतराग तीर्थंकर भगवान् महावीर के प्रति प्रशस्त राग रहा, तब तक उन्हें केवलज्ञान एवं वीतरागता की प्राप्ति नहीं हुई।
नीचे की भूमिका में अप्रशस्त रागद्वेष को छोड़कर
प्रशस्त राग-द्वेष अपनाएँ इसलिए रागद्वेष कर्मबन्धकारी आत्मशत्रु होने से सर्वथा त्याज्य होते हुए भी जब तक सर्वथा त्याग न कर सकें तब तक अप्रशस्त रागद्वेष त्याग करके प्रशस्त रागद्वेष को अपनाएँ। व्यवहार के क्षेत्र में शुभ-अशुभ परिणति के कारण राग-द्वेष भी नियमसार में प्रशस्त और अप्रशस्त (शुभ-अशुभ) के भेद से दो प्रकार के बताए हैं।' किसी भी शुभ हेतु, शुभ आशय, प्रशस्त इरादे से किये गए राग और द्वेष कथंचित् इष्ट है। देव (अरिहन्त वीतराग), गुरु (निर्ग्रन्थ) और धर्म (शुद्ध सम्यग्दर्शनादिरूप) के प्रति आत्मकल्याण की दृष्टि से किया गया राग प्रशस्त राग कहा जाता है। मेरी आत्मा का कल्याण हो, मेरे कर्मों की निर्जरा हो, मेरा संसारपरिभ्रमण कम हो और मेरी आत्मा का विकास होकर मुझे शीघ्र मोक्ष मिले, ऐसी पवित्र भावना से वीतराग परमात्मा के प्रति तीव्र अनुराग रखा जाए, प्रशस्त प्रेमभाव से भक्ति की जाए, इसे प्रशस्त राग कहते हैं। इसी प्रकार परमात्मपद या मोक्ष के प्रति भी ऐसी कल्याण भावना रखी जाए, उसे प्रशस्तराग कहा जा सकता है। पवित्र मोक्ष मार्ग के प्रति राग (प्रीति) को 'परमात्मप्रकाश' में अभीष्ट माना है। 'कषाय-पाहुड' में तो स्पष्ट कहा है-रत्नत्रय के साधन विषयक लोभ (राग) से स्वर्ग और मोक्ष की
१. (क) आसवहेदू य तहा भावं, मोक्खस्स कारणं हवदि।
सो तेण ह अण्णाणी, आद-सहावाऊ विवरीओ॥५५॥ -मोक्षप्राभूत ५५ श्लो. (ख) मोक्खु य चिंतहि जोइया। मोक्खु ण चिंतिउ होइ॥ -परमात्मप्रकाश मू. २/१८८ (ग) मोक्षेऽपि मोहादभिलाष दोषो, विशेषतो मोक्ष-निषेधकारी।
(पंचविशतिका पद्मनन्दि) १/५५ २. बध्यतेऽष्टविधेन कर्मणा येन हेतुभूतेन तद्बन्धनम्।
-आचार्य नमि
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