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________________ रागबन्ध और द्वेषबन्ध के विविध पैंतरे ___ राग और द्वेष : दो प्रकार की विद्युत् के समान बिजली दो प्रकार की होती है-ए.सी. और डी.सी.। एक, आदमी को अपनी ओर खींचती है, जबकि दूसरी झटका देकर आदमी को दूर फैंक देती है। किन्तु दोनों प्रकार की ये बिजलियाँ मारक और जानलेवा होती हैं। दोनों का दुष्परिणाम घातक और दुःखदायक तथा हानिकारक है। परन्तु इन दोनों प्रकार की बिजलियों से सम्बन्ध, सम्पर्क या संसर्ग होता है, तभी ये घातक सिद्ध होती हैं। कोई इन्हें छुए नहीं, इनसे दूर रहे, तो ये उसे कोई हानि नहीं पहुंचा सकतीं। . . ठीक इसी प्रकार राग और द्वेष होते हैं। राग प्राणियों को अपनी ओर खींचने का काम करता है और द्वेष झटका देकर दूर फैंकने वाली विद्युत् की तरह है। द्वेष एकदम उस व्यक्ति या वस्तु के प्रति भड़क कर उसे मन से दूर फैंक देता है, उससे किनाराकसी करता है, वह कोई सजीव प्राणी हो या मनुष्य हो तो उससे बोलना, सहयोग देना बन्द कर देता है; नाक के मैल की तरह उसे घर से निकाल देता है अथवा तीव्र द्वेषवश जान से ही मार डालता है। रागभाव किसी व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति, पद, प्रतिष्ठा या शरीरादि के प्रति होने पर वह उस रागाविष्ट व्यक्ति को अपनी ओर खींचता चला जाता है। इसके विपरीत द्वेषभाव किसी व्यक्ति, वस्तु या शरीरादि के प्रति होने पर उनके प्रति घृणा, विरोध, ईर्ष्या, वैर, अरुचि एवं अन्यमनस्कता के रूप में अभिव्यक्त होता है। फिर वह उस व्यक्ति या वस्तु के प्रति रोष, आक्रोश भड़का कर उसे दूर ठेल देता है, उसे हृदय से और वैसे भी निकाल देता है अथवा उसे समाप्त कर देता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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