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________________ ५४६ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ प्रति उसने स्नेहभाव ही रखा। ऐसा प्रेमी देव तेरी नानी के सिवाय कौन हो सकता है? वही धार्मिक वृत्ति वाली थी। देवगति में गई है। तेरे मुँह से भजन सुनती थी और तुझे मिठाई देती थी।" अब मांगीलाल का डर निकल गया। उसने पूछा-"तो क्या वह राममाली मेरी नानी ही थी? क्या वह अनेक रूप बना सकती है?" "क्यों नहीं, देवता के पास वैक्रिय शक्ति होती है।" "अगर मेरी नानी ही राममाली का रूप बनाकर आती थी, तो असली रूप में क्यों नहीं आती? नानी से तो मैं कदापि नहीं डरूँगा।" मांगीलाल ने कहा। ___ "तो दिल पक्का करके देख।" यों कहकर देवगति प्राप्त नानी ने पहले राममाली का, फिर अपना असली (भूतपूर्व) रूप बनाया। मांगीलाल प्रसन्न होकर नानी के चरणों में लोट गया। पहले तो उससे क्षमा मांगी, कहा-"नानीजी ! मैं आपसे कभी नहीं डरूँगा, मुझे दर्शन दिया करना और सुखी करना।" नानी देवता ने कहा-"बेटा, तू आज से सुबह शाम सामायिक करने का नियम ले। फिर जब भी तू मुझे बुलाना चाहे, एकान्त में बैठकर मेरे तीनों प्रिय भजन गाकर मुझे याद करना, मैं आ जाऊँगी। पर याद रखना-'मैं तेरे अतिरिक्त किसी को नहीं दिखाई दूँगी। दूसरी शर्त यह है कि तू मेरे आने की बात किसी से मत कहना। जिस दिन तूने यह बात किसी से कह दी तो फिर मैं कभी नहीं आऊँगी।' . मांगीलाल-"नानी माँ ! मैं इसे स्वीकार करता हूँ।" फिर नानी देवता से अपनी गरीबी मिटाने का अनुरोध करने पर उसने कहा-"तू सुबह अपने पिता की बही निकाल कर पंचों को दिखाना। उसमें लिखा होगा-"५०० सोने के और चाँदी के सिक्के पूर्व दिशा की दीवार में नींव में गड़े हैं।" पंचों को बही दिखा देने पर इतना धन कहाँ से मिला? पंच और सरकार सभी लफड़ों से तू बच जाएगा। तू सदा सुखी. रह।" इतना कहकर नानी देवी अन्तर्धान हो गई। मांगीलाल ने पंचों को वह बही दिखाकर उसमें लिखे अनुसार वह धन निकाल लिया। अब उस धन से अपनी निजी दूकान लगा कर बैठ गया। दूकान अच्छी चलने लगी। थोड़े ही वर्षों में मांगीलाल मालामाल हो गया। एक दिन एक व्यक्ति ने अपनी सुन्दर कन्या भी उसके साथ ब्याह दी। उससे दो बच्चे भी हो गए। अब उसके दिन चैन से कटने लगे। सख-सविधा होने पर भी सामायिक और धर्मध्यान नहीं छोड़ा। एक बार मांगीलाल की पत्नी को भयंकर उदरशूल हो गया। दवा से कुछ भी लाभ नहीं हुआ। मांगीलाल ने भजन गाकर नानी देवता को याद किया। नानी ने आकर एक गुड़ की डली.दी और पत्नी को खिलाते ही बीमारी ठीक हो जाने का आश्वासन दिया। वह गुड़ की डली खाते ही मांगीलाल की पत्नी ठीक हो गई। पर उसने यह जानने के लिए हठ पकड़ ली कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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