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________________ मार्गणास्थान द्वारा संसारी जीवों का सर्वेक्षण-२ २५३ • विग्रहगति में वर्तमान जीव, केवलि समुद्घात के तीसरे, चौथे और पांचवें समय में वर्तमान, चौदहवें गुणस्थान में वर्तमान और सिद्ध, ये सब जीव अनाहारक हैं, शेष सब आहारक हैं। इस प्रकार चौदह मार्गणास्थानों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा है। इस सर्वेक्षण से प्रेरणा और प्रगति का लाभ इस प्रकार चौदह मार्गणाओं के बासठ उत्तरभेदों का जीवस्थान आदि ६ बातों का सर्वेक्षण किया गया है। इस सर्वेक्षण से इतनी स्पष्ट प्रतीति जीवों की विभिन्न पहलुओं से स्वाभाविक एवं वैभाविक अवस्थाएँ किस-किस प्रकार से, कौन-कौनसे माध्यम से, कैसे बदलती हैं? मुमुक्षु जीव यदि इन अवस्थाओं पर चिन्तन-मनन करे तो इनसे प्रेरणा लेकर कर्मबन्ध से कर्ममुक्ति की ओर सावधानी-पूर्वक गतिप्रगति कर सकता है। १. (क) पच्छाणुपुव्वि लेसा, थोवा दो संखणंत दो अहिया। ___ अभवियर थोवणंता, सासण थोवोवसम-संखा ॥ ४३॥ (ख) मीसा संखा वेयग, असंखगुण खइय-मिच्छ दु अणंता। संनियर थोव णंताणहार थोवेयर असंखा॥४४॥ . -चतुर्थ कर्मग्रन्थ (ग) चतुर्थ कर्मग्रन्थ गा. ४३, ४४ विवेचन (पं० सुखलालजी) से सारांश, पृ० १२८ से १३३ . (घ) (अ) लेश्या के अल्पबहुत्व के लिए देखें-(१) प्रज्ञापना पद ३ पृ० १३५ (२) गोम्मटसार जीवकाण्ड गा. ५३६ से ५४१ तक (ब) भव्य मार्गणा, संज्ञिमार्गणा, आहारक मार्गणा के अल्पबहुत्व के लिए देखें प्रज्ञापना अल्पबहुत्व पद में क्रमशः पृष्ठ १३९, १३९, १३२/१ सम्यक्त्व मार्गणा का अल्पबहुत्व पृ० १३६ पर। देखें-भव्य, सम्यक्त्व, संज्ञी और आहारक मार्गणा का अल्पबहुत्व -गोम्मटसार जीवकाण्ड गा. ५५९, ६५६, ६५८,६६२, ६७० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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