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२१६ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
(९) दर्शन-मार्गणा के भेद और उनके स्वरूप दर्शनमार्गणा के चार भेद हैं-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन। चक्षुदर्शन वह है, जिसमें चक्षुरिन्द्रिय द्वारा पदार्थ के सामान्य अंश का बोध हो। अचक्षुदर्शन वह है, जिसमें चक्षु के अतिरिक्त अन्य इन्द्रियों और मन के द्वारा पदार्थ के सामान्य अंश का बोध हो। अवधिदर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम से इन्द्रियों की सहायता के बिना अवधि-लब्धिवालों को जो रूपीद्रव्यविषयक सामान्य बोध होता है, वह अवधिदर्शन है। सम्पूर्ण द्रव्य-पर्यायों को सामान्यरूप से विषय करने वाले बोध को 'केवलदर्शन' कहते हैं। समस्त आवरणों के अत्यन्तक्षय से सिर्फ आत्मा ही मूर्त-अमूर्त सर्वद्रव्यों का पूर्णतया सामान्यरूप अवबोध करती है। दर्शन को अनाकार उपयोग इसलिए कहते हैं कि वह वस्तु के सामान्य विशेष उभय रूपों में से सामान्य रूप (आकार) को ही मुख्यतया जानता-देखता है। न्यायवैशेषिक आदि दर्शनों में दर्शन को 'निर्विकल्प-अव्यवसायात्मक ज्ञान' कहा गया
(१०) लेश्या मार्गणा के भेद और उनका स्वरूप लेश्या-मार्गणा के छह भेद हैं-कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म और शुक्ल। लेश्या के दो भेद हैं-द्रव्यलेश्या और भावलेश्या। द्रव्यलेश्या पुद्गल विशेषात्मक है। इसके रंग, रस, गन्ध और स्पर्श चारों होते हैं। द्रव्यलेश्या का स्वरूप तीन प्रकार का पाया जाता है-(१) कर्मवर्गणानिष्पन्न, (२) कर्मनिष्यन्न और (३) योगों का परिणाम। प्रथम मतानुसार-लेश्याद्रव्य कर्मवर्गणा से बने हुए हैं, तथापि वे अष्टविध कर्मों से भिन्न हैं; जैसे कि कार्मणशरीर। यह मत उत्तराध्ययन (अ. ३४) की टीका
(पृष्ठ २१५ का शेष)
(ख) देशे-संकल्प-निरपराध-त्रसवध-विषये यतं-यमनं संयमो यस्य स देशयतः ____ सम्यक्दर्शनयुत एकाणुव्रतादिधारी अनुमतिमात्रश्रावक इत्यर्थः। (ग) न विद्यते यतं-विरतं विरतिर्यस्य सोऽप्यतः सर्वथा विरतिहीनः।
-वही स्वो. टी. पृ. १३७ . (क) चक्खूणं जं पयासइ, दीसइ तं चक्खुदसणं विंति। सेसिंदियप्पयासो णायव्वो सो अचक्खुं ति।
-पंचसंग्रह १३९ (ख) केवलेन सम्पूर्णवस्तुतत्वग्राहक-बोध-विशेषरूपेण यद्दर्शनं-सामान्यांशग्रहणं तत्केवलदर्शनम् ॥
___-चतुर्थ कर्मग्रन्थ पृ.-१३७ (ग) भावाणं सामण्ण-विसेसयाणं सरूवमेत्तं जं।
वण्णण-हीणग्गहणं जीवेण ते दंसणं होदि॥ -गो. जी. ४८३ गा.
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