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________________ चौदह जीवस्थानों में संसारी जीवों का वर्गीकरण १७१ . सामान्यतया एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव पांच प्रकार के होने पर भी एकेन्द्रियों के सूक्ष्म और बादर तथा पंचेन्द्रियों के संज्ञी और असंज्ञी ये विशेष भेद होने से ७ प्रकार के हो जाते हैं। फिर सूक्ष्म एकेन्द्रिय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय तक के जीव अपनी-अपनी योग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करने या न करने की शक्ति वाले होते हैं। अतः इन सभी संसारी जीवों का बोध कराने हेतु जीवस्थान के चौदह भेद किये गए हैं। समवायांग सूत्र में इन्हें '१४ भूतग्राम' कहा गया है और द्रव्यसंग्रह में इनके लिए १४ 'जीवसमास' का प्रयोग किया गया है। इन चौदह प्रकारों का वर्गीकरण इतना वैज्ञानिक और युक्तिसंगत है कि उनमें समस्त संसारी जीवों का समावेश हो जाता है। प्रज्ञापना, भगवती आदि आगमों में प्रायः २४ दण्डकों में संसारी जीवों का वर्गीकरण करके लेश्या, योग, उपयोग, बन्ध, उदय आदि का विचार प्रस्तुत किया गया है। परन्तु कर्मशास्त्र में प्रायः चौदह भागों में समस्त जीवों को वर्गीकृत किया गया है। १. (क) कर्मग्रन्थ भा. ४, गा. २ विवेचन (मरुधरकेसरीजी) (ख) चउदस भूअग्गामा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुम अपज्जत्तया, सुहुम षजत्तया, बादरा अपज्जत्तया, बादरा पज्जत्तया, बेइंदिया अपजत्तया, बेइन्दिया पजत्तया, तेइंदिया अपजत्तया, तेइंदिया पज्जत्तया, चउरिदियाऽपज्जत्तया, चउरिंदिया पजत्तया, पंचिंदिया असन्नि अपज्जत्तया, पंचिंदिया असन्नि-पज्जत्तया, पंचिंदिया सन्नि अपजत्तया, पंचिंदिया सन्निपजत्तया। -समवायांगसूत्र समवाय १४/१ (ग) पुढवी-जल-तेज-वाऊ-वणप्फदी विविह-थावरेन्दी। बिग-तिग-चदु-पंचक्खा तस जीवा होंति संखादि॥ समणा अमणा णेया, पंचिंदिय-णिम्मणा परे सव्वे। बादर-सुहुमे इन्दी सव्वे पजत्त इदरा य ॥ -द्रव्यसंग्रह गा. ११, १२. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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