SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मबन्ध की विविध परिवर्तनीय अवस्थाएँ-१ ११७ अनुसार डिग्री टु डिग्री भाव होता है, उसी प्रकार बन्ध के अनुसार डिग्री टु डिग्री उदय नहीं होता; क्योंकि बन्ध और उदय के बीच में सत्ता की एक बहुत चौड़ी और बड़ी खाई है, जिसमें प्रतिक्षण कुछ न कुछ परिवर्तन होते रहते हैं। जैसा कर्म बँधा है, वैसा का वैसा ही रदय में आए, ऐसा कोई नियम नहीं है, सत्ता में रहते हुए उस बद्ध कर्म को अनेक परिवर्तनों में से गुजरना पड़ता हैं। बन्ध, सत्ता और उदय आदि जिन १० करणों-अवस्थाओं का नामोल्लेख पहले किया गया है, उसमें से तीन करणों का ही विवेचन हो पाया है, शेष सात करणों का विवेचन अगले निबन्ध में करना है। अतः बन्ध और उदय की पूर्वोक्त व्याप्ति सुनकर आत्मार्थी एवं मुमुक्षु साधक को घबराना नहीं चाहिए। शेष सात करणों में से उद्वर्तन (उत्कर्षण), अपवर्तन (अपकर्षण), संक्रमण, उदीरण और उपशमन, ये पांच करण उसकी सहायता के लिए हरदम तैयार हैं। उत्कर्षण, अपकर्षण, संक्रमण, उदीरण और उपशमन ही वस्तुतः ऐसी परिवर्तनीय अवस्थाएँ (करण) हैं, जिसमें से सत्तागत कर्मों को गुजरना पड़ता है। अगर साधक लक्ष्य की दिशा में डटकर परिवर्तन के लिए कटिबद्ध हो जाए तो कर्मों की निर्जरा और क्षय होते देर नहीं लगेगी। १. कर्मसिद्धान्त, पृ. ९६, ९७ से भावग्रहण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy