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सन् १९८८ में श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज एवं आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज अहमदनगर वर्षावास सम्पन्न कर औरंगाबाद पधारे, तब आपका. आचार्यश्री से सम्पर्क हुआ। आचार्यश्री के साहित्य के प्रति आपकी विशेष अभिरुचि जाग्रत हुई। कर्म-विज्ञान पुस्तक के चार भागों के प्रकाशन में आपश्री ने विशिष्ट अनुदान प्रदान किया है। अन्य अनेक प्रकाशनों में भी आपश्री ने मुक्त हृदय से अनुदान प्रदान किया है। आपकी भावना है, घर-घर में सत्साहित्य का प्रचार हो, धर्म एवं नीति के सद्विचारों से प्रत्येक पाठक का जीवन महकता रहे।
आपकी उदारता और साहित्यिक सुरुचि प्रशंसनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है। आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान निम्न हैं।
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आपका पता है : . चम्पालाल शेखर कुमार देसरड़ा 'अनुकृपा' २८, व्यंकटेशनगर, जालना रोड, औरंगाबाद-४३१००१ फोन : २८९४४, २६१५६, २६५४६
चुन्नीलाल धर्मावत
कोषाध्यक्ष श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर
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