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________________ (७) सन्तान - एक समान वातावरण में, एक समान पर्यावरण में पलने पर, एक समान संस्कार और शिक्षा की व्यवस्था होने पर भी - दोनों में बहुत सी असमानताएँ रहती हैं। एक समान जीन्स होने पर भी दोनों के विकास में, व्यवहार में, बुद्धि और आचरण में भेद मिलता है। एक अनपढ़ माता-पिता का बेटा प्रखर बुद्धिमान और एक डरपोक कायर माता-पिता की सन्तान अत्यन्त साहसी, वीर, शक्तिशाली निकल जाती है। बुद्धिमान माता-पिता की सन्तान मूर्ख तथा वीर कुल की सन्तान कायर निकल जाती है। सगे दो भाइयों में से एक का स्वर मधुर है, कर्णप्रिय है। दूसरे का कर्कश है। एक चतुर चालाक वकील है, तो दूसरा अत्यन्त शान्तिप्रिय, सत्यवादी है। ऐसा क्यों है ? वंशानुक्रम विज्ञान के पास इन प्रश्नों का आज भी कोई उत्तर नहीं है। मनोविज्ञान भी यहां मौन है। एक सीमा तक जीन्स का अन्तर समझ में आ सकता है। परन्तु जीन्स में यह अन्तर पैदा करने वाला कौन है ? विज्ञान वहां पर मौन रहता है, तब हम कर्म सिद्धान्त की ओर बढ़ते हैं। कर्म जीन से भी अत्यन्त सूक्ष्म सूक्ष्मतर है। और जीन की तरह प्रत्येक प्राणधारी के साथ संपृक्त है। अतः जब हम सोचते हैं कि व्यक्ति-व्यक्ति में जो भेद है, अन्तर है, उसका मूल कारण क्या है ? तो कर्म शब्द में इसका उत्तर मिलता है। गौतम ने भगवान महावीर से पूछा- इन प्राणियों में परस्पर इतना विभेद क्यों है ? तो भगवान महावीर ने इतना स्पष्ट और सटीक उत्तर दिया- " गोयमा ! कम्मओ णं विभत्ती भावं जणयइ !" हे गौतम ! कर्म के कारण यह भेद है ? “कर्म" ही प्रत्येक प्राणी के व्यक्तित्व का घटक है। विपाक सूत्र' में वर्णन आता है। इन्द्रभूति गौतम मृगापुत्र ( मृगालोढा ) को देखने के लिए गये। वह विजय क्षत्रिय राजा की रानी मृगादेवी की कुक्षि से जन्मा था। रानी की अन्य सन्तानें बहुत सुन्दर और दर्शनीय थीं, परन्तु मृगालोढा एक पत्थर के गोलमटोल आकार का लोढा जैसा था। न आदमी, न पत्थर ! उसका मुखद्वार और मलद्वार एक ही था। उसके शरीर से इतनी भयंकर बदबू आती थी कि कोई उसके पास खड़ा भी नहीं रह सकता था। यह विचित्र और अत्यन्त करुणाजनक स्थिति देखकर गौतम जैसे ज्ञानी भी द्रवित हो गये । गौतम ने भगवान के पास आकर पूछाभन्ते ! राजघराने में जन्मा यह प्राणी इतना दारुण / असह्य दुःख क्यों भोग रहा है ? भगवान ने उत्तर दिया- गौतम ! आज यह इतना कष्ट क्यों पा रहा है, इसका उत्तर पाने के लिए वर्तमान को नहीं, अतीत को देखो। पूर्वजन्म में उसने क्या-क्या कर्म किये हैं? उन कर्मों पर विचार करो तो तुम्हें समाधान मिलेगा, कि इसे दुःख देने वाला कोई अन्य नहीं, इसी के स्वकृत कर्म हैं। १. प्रथम अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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