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________________ प्राण-संवर का स्वरूप और उसकी साधना. ९२३ असाधारण मनोबल प्राण के बल पर ब्रिटिश सरकार को बिना अस्त्र शस्त्र के झुका सकने में समर्थ हुए। दुर्बलकाय एवं अल्सर जैसे रोग से ग्रस्त संत विनोबाभावे अपने जीवन काल में भूदान-ग्रामदान आदि के आन्दोलन द्वारा भारत के अगणित लोगों में दानचेतना जगा सके और अनेक कार्यकर्ताओं का निर्माण कर सके। यह सब प्राणऊर्जा '. सम्पन्न मनोबल का ही प्रभाव था। . .. - ये सब उदाहरण शरीरबल के नहीं, मनोबल की महत्ता प्रतिपादित करते हैं। शरीरबल और मनोबल की तुलना करनी हो तो विशालकाय हाथी के अपेक्षाकृत लघुकास सिंह के मल्लयुद्ध प्रतिफल से वस्तुस्थिति सहज ही समझी जा सकती है। .... प्राणशक्ति समन्वित मनोबल द्वारा प्रबल इच्छाशक्ति की वृद्धि के चमत्कार . मन की शक्ति प्राणमयी जैविक ऊर्जा से बढ़ती है, उसके द्वारा अभूतपूर्व इच्छा शक्ति (Will power) बढ़ाई जा सकती है। मैस्मैरिज्म और हिप्नोटिज्म इसी मनोबल से अनुप्राणित इच्छा शक्ति के चमत्कार हैं। मांत्रिक साधना के द्वारा मनोबल से अनुप्राणित इच्छाशक्ति से कतिपय जैन यतियों के द्वारा मकान को एक जगह से उठाकर या खिसकाकर दूसरी जगह ले जाने, अन्न के बोरों को एक जगह से दूसरी जगह .. उड़ा ले जाने, अमावस्या को पूर्णिमा के चन्द्र का दृश्य दिखा देना तो कई लोगों के मुंह से सुने हैं। मास्को निवासी कुमारी नेल्सा माइखेलोवा नामक रूसी महिला ने मन की । अत्यधिक एकाग्रता और इच्छाशक्ति के प्रयोग से ऐसी मानसिक शक्ति (मन में सन्निहित प्राणऊर्जा) प्राप्त की है कि वह अपनी तीक्ष्ण दृष्टि का प्रयोग करके चलती हुई घड़ी की चाल रोक देती है। उसे तेज या मन्द कर सकती है। कम्पास की सई को भी इधर-उधर कर सकती है। इतना ही नहीं, मेज पर रखी हुई वस्तुओं को बिना छुए वह इधर से उधर कर सकती है। रूस के प्रमुख समाचार पत्र प्रावदा' के संवाददाता नेल्सा से भेंट की तो उसने अपने मनोबल प्राण के विकास के कई चमत्कार बताए। वस्तुओं को प्राणऊर्जा समन्वित मनोबल के आधार पर इच्छाशक्ति द्वारा प्रभावित करने का अब एक स्वतंत्र विज्ञान ही बन गया है जिसे 'साइकोक्रिनासिस' (संक्षेप में सी. के.) कहते हैं। इस विज्ञान द्वारा यह तथ्य प्रतिपादित किया जाता है कि ठोस दीखने वाले पदार्थों के अन्तर्गत भी विद्यत-अणुओं की तीव्रगामी हलचलें होती. रहती हैं। इन विधुत्-अणुओं (जैनदृष्टि से तैजस् अणुओं) में भी स्पन्दन करने वाला (सचेतन) तत्त्व है, जिसे (प्राणऊर्जा से उत्पन्न) मनोबल की शक्तितरंगों द्वारा प्रभावित, नियंत्रित एवं परिवर्तित किया जा सकता है। १. अखण्डज्योति नवम्बर १९७३ से भावांश ग्रहण, पृष्ठ ५० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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