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________________ मनःसंवर का महत्त्व, लाभ और उद्देश्य ८३१ जा सकता है। इसी के अवलम्बन द्वारा मन अपनी उच्चतम पंचम (निरुद्ध) अवस्था में पहुँच जाता है। निरुद्ध अवस्था में मन अतिवेतन स्तर पर चला जाता है।' . मनःसंवर के विविध पहलू चूंकि मनःसंवर के अनेक पहलू और प्रकार है। अतः मनःसंवर में मनोनिरोध, मनोनिग्रह, मनःसंयम, मनोजय, मन स्थिरता, मानसिक एकाग्रता आदि सबका समावेश हो जाता है। ये सब मनःसंवर के उद्देश्य एवं प्रयोजन को ही सिद्ध करते हैं। पूर्वोक्त समग्र विवेचन से मनःसवर की महत्ता, विशेषता, उपादेयता, उपलब्धियाँ, लाभ और उद्देश्य स्पष्ट हैं। अतः आनवों से विरति के हेतु मनःसंवर की साधना कर्ममुमुक्षुओं के लिए कितनी अनिवार्य एवं हितावह है ? यह समझ लेना चाहिए। मनःसंवर क्या है, क्या नहीं ? मनःसंवर की साधना की पद्धतियाँ और उसके विविध पहलू कौन-कौन से हैं, इस पर हम अगले निबन्धों में प्रकाश डालने का प्रयल करेंगे। १. (क) वही, पृ. ३३-३४ .. (ख) देखें अगले निबन्ध में इसकी समानान्तर अवस्थाओं का जैन बौद्ध परम्परा में निरूपण। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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