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________________ ८१४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६) मन का शरीर पर जबर्दस्त और अचूक प्रभाव पड़ता है। क्षुब्ध मनःस्थिति में लटका हुआ फीका चेहरा, चिन्ता और परेशानी के समय नींद का उड़ जाना तथा प्रसन्नता के समय खिल उठना आदि बातें शरीर पर मन के प्रभावों को प्रमाणित करती डॉ. क्रेन्स डोलमोर और डॉ. रोओ द्वारा सन् १९२३ में की गई शोधे भी शरीर पर मन के प्रभावों को सिद्ध करती हैं। उनका कहना है कि यदि मनुष्य का मन स्वस्थ हो तो शरीर में कोई रोग हो ही नहीं सकता। उन्होंने अपनी पुस्तक में दो फोटो भी प्रकाशित किये हैं। एक फोटो ५० वर्ष की आयु वाले व्यक्ति का है। जिसका चेहरा सूखा और मुर्शाया हुआ है, गाल पिचके हुए, और आँखें अंदर धंसी हुई हैं। दूसरा फोटो ७० वर्ष की आयु वाले व्यक्ति का है; जिसके चेहरे पर कोई झुरीं नहीं, कोई सिकुड़न नहीं, तथा बुढ़ापे का कोई लक्षण नहीं प्रतीत होता। यह है, 'शरीर पर पड़ने वाले मन के प्रभाव का निदर्शन"! . दूषित मनःस्थिति वाले लोग ही समाज में हत्या, युद्ध आदि के कारण ___ समाज में भी आए दिन संघर्ष, विग्रह, कलह, युद्ध, दंगे, फसाद, आगजनी, लूटपाट, हत्या, रोग, शोक आदि जितने भी विकार पैदा होते हैं, उनके पीछे भी कारण हैं-दूषित मनःस्थिति और दूषित विचारधारा वाले व्यक्ति। संसार में जितने भी युद्ध, नरसंहार और रक्तपात हुए हैं, वे प्रायः ऐसी विकृत मनःस्थिति वाले व्यक्तियों के कारण ___ एक व्यक्ति की क्रूरता, हिंस्रता और अहंवादिता अथवा हठधर्मिता के कारण ही संसार के लाखों लोग अकाल युद्ध के गाल में काल-कवलित हुए। विकृत मनःस्थिति किस प्रकार अनर्थ उत्पन्न करती है ? इसका ताजा उदाहरण है-द्वितीय विश्वयुद्ध। जिसमें दो करोड़ से भी अधिक मनुष्य मारे गए। इसके विपरीत एक व्यक्ति की परिष्कृत शुद्ध सात्त्विक मनःस्थिति का प्रभाव भी महात्मा गाँधी, संत विनोबा, मार्टिन लूथर किंग, हेमचन्द्राचार्य, अब्राहम लिंकन आदि मनीषियों के रूप में देख सकते हैं, जिनकी शुद्ध मनःस्थिति के कारण समाज और राष्ट्र में परिस्थिति-परिवर्तन हुआ। शुद्ध संस्कृति के मूल्यों का प्रतिरोपण हुआ। क्रूरतापूर्वक हत्या का बालक आरमण्ड के मन पर आजीवन प्रभाव २१ जनवरी १७९३ को फ्रांस के सम्राट् सोलहवें लुई को क्रूरतापूर्वक दिये गये मृत्युदण्ड के बीभत्स दृश्य का प्रभाव चार वर्ष के बालक आरमण्ड पर इतना जबर्दस्त १. (क) अखण्ड ज्योति दिसम्बर १९७८ से पृ. १५ (ख) वही, अगस्त १९७६, पृ. ४ २. वही, दिसम्बर १९७८ से पृ. १५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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