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________________ ७६० कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६) जहाँ दृश्य और श्रव्य का समावेश है, वहाँ दृश्य पहले दीखेगा और उस घटना के साथ जुड़ी हुई श्रव्य आवाज कान तक पीछे पहुँचेगी।' इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगों का चमत्कार रेडियो प्रसारण में एक छोटी-सी आवाज को विश्वव्यापी बना दी जाती है। उसे १ लाख ८६ हजार मील प्रति सैकिण्ड की गति से चलने योग्य बना देने में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों (Waves) का ही चमत्कार होता है। रेडियो मैकेनिक 'इलेक्ट्रोमैग्नेटिक उव्ज' पर साउण्ड (आवाज) का सुपर कम्पोज कर देते हैं, जिससे पलक मारते. ही वह आवाज सारे संसार की परिक्रमा कर लेने जितनी शक्तिशाली बन जाती है। '' इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगों की शक्ति से चिकित्सा क्षेत्र में चमत्कार वर्तमान में इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगों की शक्ति से अन्तरिक्ष में भेजे गए राकेटों की उड़ान को इस धरती पर से नियंत्रित करने, उन्हें दिशा निर्देश देने, संकेत देने एवं यांत्रिक खराबी को दूर करने का प्रयोजन पूरा किया जाता है। ... ये किरणें (तरंगें) जब 'लैसर' स्तर की बन जाती हैं, तब इनकी शक्ति अपार हो जाती है। एक फुट मोटी लोहे की चद्दर में सूराख कर देना उनके बाँये हाथ का खेल है। ये किरणें इतनी बारीक (पतली) होती हैं कि आँख की पुतली के लाखवें हिस्से में खराबी होने पर मात्र उतने ही हिस्से का निर्धारित गहराई तक ही सीमित रहने वाला सफल ऑपरेशन कर देती है। अब इन किरणों का उपयोग चिकित्साक्षेत्र में भी बहुत होने लगा है। कैंसर, आंत्र-शोथ, यकृत की विकृति, गुर्दे की सूजन, हृदय की धड़कन जैसी बीमारियों की चिकित्सा में भी इनका सफल उपयोग होने लगा है। यह है शब्द शक्ति का अद्भुत चमत्कार! जपक्रिया के द्वारा सुपरसौनिक तरंगों का उत्पादन . इन सुपरसौनिक तरंगों का जप-प्रक्रिया के द्वारा उत्पादन और समन्वय संभव है। जप के समय उच्चारण किये गए शब्द के साथ आत्मनिष्ठा, संकल्प और श्रद्धाशक्ति का समन्वय होने से वैसी ही क्रिया सम्पन्न हो सकती है, जो रेडियो-स्टेशन पर बोले गए शब्द विशिष्ट विद्युत् शक्ति के साथ मिलकर अत्यन्त शक्तिशाली हो जाते हैं और क्षण भर में समस्त भूमण्डल में अपना दृश्य या श्रव्य सन्देश प्रसारित कर देते हैं। ___जप-प्रक्रिया में एक विशेषता यह भी है कि उससे न केवल समग्र संसार का वातावरण प्रभावित होता है, अपितु जप-साधक का व्यक्तित्व भी जगमगाने और उत्साहपूर्वक झनझनाने लगता है, जबकि रेडियो-स्टेशन से प्रसारण करने में दूरस्थ लाभ १. अखण्ड ज्योति जनवरी १९७६ से भावांश ग्रहण पृ. ५९ २. वही, जनवरी १९७६ से भावांश उद्धृत पृ. ६० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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