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________________ खण्ड (६) कर्मों का आस्रव और संवर १. कर्मों का आनव : स्वरूप और भेद २. आनव की आग के उत्पादक और उत्तेजक ३. कर्म आने के पाँच आनवद्वारे ४. योग- आस्रव: स्वरूप, प्रकार और कार्य ५. पुण्य और पाप : आनव के रूप में ६. पुण्य कब और कहाँ तक उपादेय एवं हेय ? ७. आनव मार्ग संसारलक्ष्यी और संवरमार्ग मोक्षलक्ष्यी ८. आनव की बाढ़ और संवर की बाँध ९. काय - संवर का स्वरूप और मार्ग १०. वचन-संवर की महावीथी ११. इन्द्रिय-संवर का राजमार्ग १२. मनःसंवर का महत्त्व, लाभ और उद्देश्य १३. मनः संवर के विविध रूप, स्वरूप और परमार्थ 7 १४. मनः संवर की साधना के विविध पहलू १५. प्राण- संवर का स्वरूप और उसकी Jain Education International १६. प्राणबल और श्वासोच्छ्वासबल - प्राण- संवर की साधना १७. अध्यात्म-संवर का स्वरूप, प्रयोजन और उसकी साधना १८. अध्यात्म-संवर की सिद्धि : आत्मशक्ति-सुरक्षा और आत्मयुद्ध से 16 पृष्ठ ५३९-१०४५ For Personal & Private Use Only ५४१ ५७२ ५८५ ६०६ ६३१ ६५७. ६८८. ७०४ - ७२५ ७५० ७७० ८०५ .८३२ ८५७ ८९४ ९३४ ९७४ १००९ www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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