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________________ आम्रव की बाढ़ और संवर की बांध ७२३ उस पर दोषारोपण करने, उसे बदनाम करने या उससे बदला लेने के लिए उत्तेजित हो जाता है तो अकषायसंवर की साधना में कषाय आम्रवों की भीड़ उसके इहलौकिक एवं पारलौकिक जीवन को कर्मों से कलुषित कर देगी। इसलिए बहुत ही दृढ़ता के साथ चारों कषायों पर विजय प्राप्त करने का पराक्रम करना चाहिए। और अयोग-संवर का भी दैनिकचर्या में यथाशक्ति अभ्यास करते रहना चाहिए। वचनगुप्ति, मनोगुप्ति और कायगुप्ति, कायोत्सर्ग, इन्द्रिय प्रतिसंलीनता, मौन, ध्यान, एकाग्रता आदि इसके प्रबल साधन हैं। इनका अभ्यास करते रहना चाहिए। मन, वचन, काय विपरीत मार्ग पर या विषयों के प्रति राग-द्वेष आदि के मार्ग पर जा रहे हों तो तुरंत उनकी लगाम खींच कर प्रतिक्रमण या प्रत्याहार करना चाहिए। कम से कम अशुभयोग से तो मन, वचन, काया को सदैव दूर रखना चाहिए। योगदर्शन के अनुसार “दीर्घकाल तक निरंतर सत्कार और श्रद्धापूर्वक (संवरसाधना का) सेवन (अभ्यास) करने से (संवर की) दृढभूमिका स्थापित हो सकती . दूसरी दृष्टि से भी संवर साधना का अभ्यास करके उसकी बांध को सुदृढ़ बनाया जा सकता है। पहले हम आस्रव के ४२ भेदों का निरूपण कर चुके हैं। उन आम्रवों का एक ओर से परिज्ञा और विवेक करें, अर्थात् संवरों के साथ में वे मिले हुए हों तो उन्हें भलीभांति जानकर उनका त्याग करें, उन्हें निकाल कर बाहर करें अथवा उखाड़ फेंकें। - जैसे किसान अंकुरित पौधों के साथ उगे हुए निरर्थक घास, तृण या कंटीले पौधों को उखाड़ फेंकता है तथा उस मिट्टी में मिले हुए कंकर, पत्थर आदि को निकाल कर बाहर करता है, उसी प्रकार आसवों को-यानी आसव के ४२ कारणों को भलीभांति जानकर उनको निकाल बाहर कर दें। उसमें से कुछ का उन्मूलन कर दें, कुछ को रोक दें। और उनके स्थान पर ५७ भेदों वाले संवर की स्थापना करें। आमव के ४२ भेद इस प्रकार हैं-अव्रत के हिंसादि पांच, कषाय के चार, इन्द्रिय विषय पर रागद्वेष के पांच तथा पच्चीस क्रियाएँ तथा मन, वचन, काय-त्रिविध योग। १. स तु दीर्घकाल-नैरन्तर्य-सत्कारासेवितो दृढभूमिः।' योगदर्शन पाद १ सू. १४) २. देखें-आसव के ४२ भेदों का निरूपण-तत्त्वार्थसार ४/७, नवतत्त्व गाथा में-५ इन्द्रिय, ४ अव्रत, २५ क्रिया और ३ योग। 1. (क) समिति-गुत्ति-परिसह जइ-धम्मो-भावणा-चरित्ताणि। पण-ति-दुवीस-दस-बारस-पंचभेएहि सत्तवन्ना ॥ - नवतत्त्व प्र. गा. ३५ (ख) ५ समिति, ३ गुप्ति, २२ परीषहजय, १0 श्रमणधर्म, १२ अनुप्रेक्षाएँ -भावनाएँ और ५ प्रकार का चारित्र, ये सब मिल कर संवरसिद्धि के ५७ भेद है। -जैनतत्त्वकलिका क. ५ पृ. ९८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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