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________________ ४६ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४) इस प्रकार कर्मसिद्धान्त मानव के लक्ष्यपथ को आलोकित करता है और मार्ग से भटकते हुए मानव को पुनः सन्मार्ग पर ला सकता है। यही कर्मसिद्धान्त की व्यावहारिक जीवन में उपयोगिता है। कर्मविज्ञान वर्तमान में प्रत्यक्ष व्यवहारों की व्याख्या भी प्रस्तुत करता है कोई व्यक्ति अपने कर्मों का फल अच्छे रूप में भोगता है तो व्यवहार में यह कहा जाता है कि “अमुक व्यक्ति ने पूर्व में शुभ कर्म किये थे, उनका फल वह अच्छे रूप में प्राप्त कर रहा है।'' इसके विपरीत कोई व्यक्ति पूर्वकृत अशुभ कर्मों का फल बुरे रूप में भोगता है तो कहा जाता है- “अमुक व्यक्ति दुष्कर्मों के फल प्राप्त कर रहा है।" उदाहरण के तौर पर कोई निर्धन विद्यार्थी मेहनत, मजदूरी करके अर्थोपार्जन करता है और उच्चशिक्षा प्राप्त कर लेता है। तदनुसार वह अपनी योग्यता और कर्मठता के आधार पर अच्छी नौकरी पा जाता है तो व्यवहार में कहा जाता है, 'यह उसके शुभकर्मों का फल है।' इसी प्रकार कोई व्यक्ति शराब पीता है, जूआ खेलता है, इस कारण अपना तन, मन और धन तीनों बर्बाद करता है, फिजूल-खर्ची करके सारा धन उड़ा देता है। इस प्रकार के अशुभकर्मों के फलस्वरूप वह दर-दर का मोहताज बन जाता है,अपना स्वास्थ्य भी खराब कर लेता है, अपने पारिवारिक जीक्न को भी दुःखमय बना लेता है तो व्यवहार में कहा जाता है- “यह उसके अशुभ कर्मों का फल है।" दैनन्दिन व्यवहारों की व्याख्या भी कर्मविज्ञान प्रस्तुत करता है ___ इन और ऐसे ही शुभ-अशुभ परिणामों को देखकर कर्मविज्ञान के विज्ञ, विशेषज्ञ या अंशतः अनभिज्ञ अथवा पूर्णतः अनभिज्ञ, सभी व्यक्ति एक स्वर से व्यक्ति के शुभ-अशुभ व्यवहारों की व्याख्या कर्म के द्वारा करते हैं। इन्हीं व्यवहारों की व्याख्या कर्मविज्ञान भी दार्शनिक ढंग से प्रस्तुत करता है- अच्छे ढंग से आचरित (सुचीर्ण) को (शुभकर्मों) का फल शुभ होता है और बुरे रूप में आचरित (दुश्चीर्ण) कर्मा (अशुभकों) का फल अशुभ होता है। इससे यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि कर्म-विज्ञान मानव तथा मानवेतर समस्त प्राणियों के दैनन्दिन व्यवहारों की व्याख्या कर्म के द्वारा प्रस्तुत करता है।' कर्मविज्ञान इस जन्म में कृतकों की संगति भी वर्तमान व्यवहार के साथ बिठाता है इतना ही नहीं, जो लोग कर्मविज्ञान पर आक्षेप करते हैं कि कर्मवाद इस जन्म में प्राप्त सुख-दुःखरूप परिणामों (फल-भोगों या विपाकों) की संगति पूर्वजन्म या पिछले १. जिनवाणी कर्मसिद्धान्त विशेषांक में प्रकाशित डॉ. शान्ता मेहता के लेख 'कर्मसिद्धान्त : एव टिप्पणी' के विचारों की छाया, पृ. ३०४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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