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________________ ५०८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) हाथ में एक ठीकरा लिए घर-घर भीख मांगता रहता था। इस प्रकार घोर कष्टपूर्ण जीवन-यापन कर रहा था। उम्बरदत्त का अन्धकारपूर्ण एवं अन्त में उज्ज्वल भविष्य उसके भविष्य के विषय में पूछने पर भगवान् ने कहा-यह उम्बरदत्त ७२ वर्ष का परम आयुष्य भोगकर यथासमय मरकर प्रथम नरक में नारक रूप से उत्पन्न होगा। फिर वहाँ से निकल कर पृथ्वीकायिक आदि जीवों में लाखों बार उत्पन्न होगा। तत्पश्चात् वह हस्तिनापुर में मुर्गे के रूप में उत्पन्न होगा। वहीं की दुराचारी मण्डली द्वारा मारा जाकर वह पुनः हस्तिनापुर में ही एक श्रेष्ठि-कुल में जन्म लेगा। वहाँ सम्यक्त्व प्राप्त करेगा। वहाँ से मरकर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में जन्म लेगा। वहाँ से च्यवकर वह महाविदेहक्षेत्र में उत्पन्न होगा। वहाँ अनगारधर्म की यथाविधि आराधना करके समस्त कर्मो का क्षय करके सिद्ध-बुद्ध होगा, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा। आठवाँ अध्ययन : शौरिकदत्त के पूर्वभव का परिचय श्रीद रसोइये के रूप में इसके अनन्तर आठवें अध्ययन में शौरिकदत्त का जीवन वृत्त है। पूर्वभव में वह नन्दिपुर नगर के 'मित्र' नामक राजा का श्रीद या श्रीयक नामक रसोइया था। वह महापापी यावत् क्रूर था। उसके वेतनभोगी मच्छीमार, व्याध तथा बहेलिए आदि (पक्षिघातक) नौकर कोमल चमड़े वाली मछलियों यावत् पताकातिपताको (मत्स्यविशेषों) तथा बकरों, भैंसों आदि पशुओं एवं तीतर, बटेर, मयूर आदि स्थलचर जानवरों का वध करके उसे (रसोइये को) देते थे। अन्य बहुत-से तीतर, मोर आदि पक्षी भी उसके पिंजरों में बंद रहते थे। श्रीद रसोइये के कई वैतनिक नौकर अनेक मूयर, तीतर आदि जीवित पक्षियों के पंख उखाड़कर उसे देते थे। श्रीद रसोइये का मांसखण्डों को संस्कारित करने का क्रूरतापूर्ण कर्म तत्पश्चात् वह श्रीद रसोइया उन अनेक जलचर, स्थलचर एवं खेचर जीवों के मांस के अत्यन्त छोटे, गोल, लम्बे तथा छोटे-छोटे टुकड़े (खण्ड) किया करता था। फिर उन टुकड़ों में कई टुकड़ों को बर्फ से पकाता था। कइयों को अलग रख देता, जिससे वे स्वतः पक जाते थे। कितने ही मांसखण्डों को धूप की गर्मी तथा हवा से पकाता था। फिर कई मांसखण्डों को काले और कइयों को लाल रंग के कर दिया करता था। फिर वह कई मांसखण्डों को छाछ से संस्कारित, कइयों को आँवलों के रस से भावित किया करता था। तदनन्तर कितने ही मांस खण्डों को तेल में तलता, कइयों को आग में भूनता तथा कई मांस के टुकड़ों को लोहे के शूल में पिरोकर पकाता था। १. देखें, विपाक सूत्र श्रु. १ अ. ७ में उम्बरदत्त के पूर्वभव और वर्तमानभव का वृत्तान्त पृ. ८१, ८७, ८८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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