SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 514
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मों के विपाक : यहाँ भी और आगे भी ४९५ दुष्ट एवं पापी गर्भ के प्रभाव से मृगारानी भी राजा की अप्रिय, अनिष्ट एवं अनचाही बन गई। जन्म हुआ तो पूर्वकृत पापकर्म के उदय से अन्धा, बहरा, लूला-लंगड़ा, और हुण्डक संस्थानी (गोलमटोल आकृतिवाला) हुआ। उसके शरीर में आँख, कान, नाक, हाथ-पैर आदि अवयवों का अभाव था, केवल उनके निशान थे। माता उसके मुंह के खड्डे में जो भी आहार देती वह रक्त और पीव बन जाता और सड़ता। जिस भूमिगृह में उसे रखा गया था, सारा बदबू मारता था। उस रुधिर और मवाद का वमन हो जाता और वह उसे भी भस्मक रोग के कारण अत्यासक्तिपूर्वक चाट जाता था। इक्काई को मृगापुत्र के भव के बाद भी लाखों बार जन्म लेना पड़ा, सद्बोध नहीं मिला यह था, इक्काई के भयंकर पापकर्मों का फल! फिर उसे सदबोध कैसे मिलता? पापफल अत्यन्त दुःखपूर्ण था। उसके पश्चात् भी सर्वज्ञ तीर्थंकर महावीर ने कहाएकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों, तिर्यंचों और नारकों में लाखों बार जन्म लेगा, फिर भी उसे सम्यक् बोध नहीं मिलेगा।' अन्त में, सुप्रतिष्ठपुर में वह श्रेष्ठि कुल में पैदा होगा। वहाँ वह साधुधर्म अंगीकार करके देवलोक में देव होगा। वहाँ से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर तप संयम के प्रभाव से सिद्धि गति को प्राप्त करेगा। उज्झितक के द्वारा गोवंश के नाश तथा वेश्यागमनादि कुकर्मों का दुःखद फल ___ इसका दूसरा अध्ययन ‘उज्झितक' है। उसके पाप कर्मों के फल-विपाक की कथा भी रोमांचक है। पापकर्मपरायण भीम नामक कूटग्राह के पुत्र रूप में एक शिशु का जन्म हुआ। जन्म से पहले ही उसकी मां उत्पला को अनेक प्रकार की मदिरा के साथ पशुओं के स्तन, अण्डकोष, पूंछ, थुई, कान, नाक, जीभ, होठ आदि अंगों का मांस पकाकर सुसंस्कृत करके खाने को दोहद उत्पन्न हुआ। उसके पति ने नगर की गौशाला के पशुओं के अंगों को काटकर सुरा के साथ मांस पकाकर खिलाया और उसका दोहद पूर्ण किया। जन्म के समय उसने बहुत कर्कश और त्रासदायक चीत्कार और कर्णकटु आक्रन्दन किया, जिससे नगर के पशु भयभीत और उद्विग्न होकर भागने लगे। इस कारण उसका नाम रखा गया-गोत्रास। गोत्रास भी अपने पिता के मरने के बाद कूटग्राह बना। वह प्रतिदिन रात्रि के समय शस्त्रास्त्र सज्जित होकर गोमण्डप में जाता और अनेक गौ आदि पशुओं के अंगोपांग काटकर ले आता। और उनका मांस पकाकर मदिरा के साथ प्रतिदिन सेवन करता था। १. देखें, विपाक सूत्र श्रु. १ अ. १ मृगापुत्र का पूर्वभव और इस भव का वृत्तान्त । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy