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________________ पुण्य और पाप के फल : धर्मशास्त्रों के आलोक में धर्मशास्त्रों में वर्णित पुण्य-पाप फल का उद्देश्य संसार के समस्त आस्तिक धर्मग्रन्थों में, आगमों और धर्मशास्त्रों में पुण्य और पाप के फल के विषय में विस्तृत चर्चा की गई है। सभी धर्मों ने अपने-अपने अनुयायियों को अच्छे मार्ग पर चलने और बुरे मार्ग से बचने, अथवा नैतिक जीवन जीने, और अनैतिक जीवन से हटने के लिए अपने-अपने धर्मशास्त्रों में, पुराणों और इतिहासों में ऐसे उपदेश, कथाएँ, रूपक आदि अंकित किये हैं। उन धर्मशास्त्रों और धर्मग्रन्थों की प्रामाणिकता और सच्चाई पर आम जनता को प्राचीन काल में भी विश्वास था और अब भी विश्वास है। अब तो टी. वी. के रंगीन पर्दे पर भी ऐसी धारावाहिक पौराणिक कथाएँ, तथा कभी-कभी ऐतिहासिक एवं सामाजिक घटनाएँ दृश्य और श्रव्य रूप में दी जाती हैं, जिनका जन-जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन सबका उद्देश्य जनता को पापकर्मों से बचाकर पुण्यकर्म की ओर प्रवृत्त करना है। आम आदमी भी धर्मशास्त्रों में अंकित उन पुण्य-पापफल के उपदेशों तथा कथात्मक वृत्तान्तों को सुन-पढ़कर अवश्य ही पुण्य-पाप के फल को श्रद्धापूर्वक हृदयंगम कर लेता है। जैनागमों में प्रतिपादित पुण्य-पाप का फल यहाँ हम जैन-आगमों के पुण्य-पापफल सूचक कुछ सूत्रों का संक्षेप में अंकन कर रहे हैं, जिससे जैनकर्मविज्ञान के हार्द को समझा जा सके। कई बार इस जन्म में किये हुए पापकर्म या पुण्य कर्म का फल तत्काल नहीं मिलता, देर से मिलता है, अथवा अगले जन्म या जन्मों में मिलता है, इस पर से किसी को कर्मफल के विषय में सन्देह नहीं करना चाहिए। .. यद्यपि जैन कर्मविज्ञान में संवर-निर्जरा और मोक्षरूप धर्म के फलों के भी यत्र-तत्र स्पष्ट उपदेश हैं, कथा सूत्र भी हैं; किन्तु उनके विषय में हम 'कर्मबन्ध से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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