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________________ ३६४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) वास्तव में लोभ समस्त पापों का मूल है और सभी चौर्यकर्म लोभवश ही होते हैं। प्रश्न २. भगवन्! भोग-उपभोग की सभी सामग्री स्वाधीन होते हुए भी मनुष्य उन्हें आधि, व्याधि, उपाधि, उद्विग्नता, चिन्ता, शोक आदि के कारण भोग नहीं सकता, यह किस पापकर्म का फल है ? उत्तर २. गौतम ! जो मनुष्य दान, परोपकार, सेवा, सहायता आदि पुण्यकर्म करके फिर उसके लिये पश्चात्ताप करता है, अगले जन्म में धन तथा भोगोपभोग के साधन आहार वस्त्रादि तो मिलते हैं, पर वह पूर्वोक्त पापकर्म के फलस्वरूप उनका भोग-उपभोग नहीं कर पाता। प्रश्न ३. भगवन् ! किस पापकर्म के कारण स्त्री वन्ध्या हो जाती है ? उत्तर ३. गौतम ! गर्म औषधियों आदि के द्वारा जो गर्भ गलाते हैं, या गिराते हैं या वृक्षों को काटते-कटवाते हैं तथा गर्भवती हिरणी आदि मादा जानवरों की शिकार करते हैं, मारते हैं और उनका मांस खाते हैं, वे इस पाप कर्म के उदय से निःसन्तान या वन्ध्या होकर दुःख पाते हैं। अथवा कंदमूल या कच्चे फल को खुश होकर तोड़ते-तुड़वाते हैं, तथा हंस-हंसकर उन्हें खाते हैं, वे गर्भ में ही मर जाते हैं, या अल्पायु होते हैं। प्रश्न ४. भगवन्! किसी-किसी स्त्री के अधूरे गर्भ गिर जाते हैं अथवा, बच्चे पैदा होते ही मर जाते हैं, ऐसा किस पापकर्म के उदय से होता है ? उत्तर ४. गौतम! जो पापी स्त्री / पुरुष हंस-हंस कर अण्डों को खाते हैं, उनके बच्चा पैदा होते ही मर जाता है, अथवा वह स्त्री मृतवत्सा होती है। अथवा जो फलदार वृक्षों पर पत्थर फेंकते हैं, या उनके कच्चे फल तोड़ लेते हैं अथवा गर्भवती नारियों को मार-मार कर अथवा अन्य प्रकार से जो निर्दयी उन्हें सताते हैं, वे स्वयं गर्भ में ही तड़प-तड़प कर मर जाते हैं। प्रश्न ५. भगवन् ! व्यक्ति एक आँख से काना किस पापकर्म के उदय से होता है ? उत्तर ५. जो अज्ञानी मानव परस्त्री की ओर कुदृष्टिपूर्वक देखता है, साधुसाध्वियों के दोष (अवगुण) देख-देखकर मन में हर्षित होता है, वह उक्त पापकर्म के उदय से एक आँख से काना होता है। प्रश्न ६. भगवन्! मनुष्य किस पाप के कारण अन्धा होता है ? उत्तर ६. गौतम ! मधु मक्खियों के छत्ते जलाने या तोड़ने, तुड़वाने व गिराने से मनुष्य अन्धा होता है। प्रश्न ७. भगवन्! मनुष्य किस पापकर्म के उदय से गूंगा होता है ? उत्तर ७. गौतम ! जो मनुष्य अरिहन्त सिद्ध परमात्मा (देव), निर्ग्रन्थ गुरु की निन्दा करता है, उनकी अवज्ञा करता है, वह उक्त पापकर्म के फलस्वरूप गूंगा होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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