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________________ २७0 कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) दिनों में आकाश की क्या स्थिति रहेगी? वह साफ रहेगा या बादलों से आच्छादित? वायुमण्डल में गर्मी रहेगी या सर्दी ? इसे यह यंत्र ठीक-ठीक बतला देता है। कम्प्यूटर-यह एक ऐसा गणकयंत्र है, जिसके माध्यम से लाखों की संख्या का जोड़, बाकी, गुणा, भाग आदि का यथार्थरूप से बहुत ही शीघ्र लगभग एक मिनट में जाना जा सकता है। एक गणितज्ञ व्यक्ति हिसाब में भूल कर सकता है, लेकिन कम्प्यूटर यंत्र कभी जोड़ आदि में भूल नहीं करता। आजकल तो कम्प्यूटर के द्वारा नौकरी के उम्मीदवार व्यक्ति का इंटरव्यू भी लिया जाता है। आजकल तो ऐसी मशीनें भी आ गई हैं, जो रोग का भी सही निदान कर लेती हैं। रोगी के फोटो पर से भी रोग का निदा करने वाले यंत्र आविष्कृत हो चुके हैं। ऐसी भी एक मशीन का आविष्कार हुआ है, जो रोग होने से पहले ही रोग की सूचना दे देती है, ताकि व्यक्ति सावधान हो जाय। वैज्ञानिकों ने आज ऐसे यंत्र का भी आविष्कार किया है, जो हृदयरोगी के शरीर के साथ लगा देने के बाद यदि हृदय का दौरा पड़ने की स्थिति बनने लगती है तो आवाज करने लगता है। यह यंत्र रोगी की भावी रोगाक्रान्त स्थिति को सूचित करने में सहयोगी बनता है। रोबोट-यह लौहनिर्मित मानव है। जो बटन दबाते ही संकेत के अनुसार काम करने लगता है। यह मनुष्य की तरह किन्तु मनुष्य से बहुत शीघ्र काम करता है। यह आश्चर्योत्पादक सेवक है, जिसके साथ मनुष्य को माथापच्ची नहीं करनी पड़ती। जिस कार्य का संकेत किया जाता है, उस कार्य को वह वफादारी पूर्वक ठीक ढंग से करता है। लोहे की बनी गाय-विदेशों में ऐसी एक लोहनिर्मितं गाय का भी आविष्कार हुआ है, जिसमें दुग्धोत्पादक सभी पदार्थ (जिन्हें खाकर असली गाय दूध देती है) उस लोह निर्मित गाय में डाल दिये जाते हैं। बस वे चार-पाँच घंटे में ही रासायनिक प्रक्रिया से घुल-मिल कर एक रूप हो जाते हैं और उसे दुहने पर बिल्कुल दूध जैसा ही पदार्थ निकलता है। यह भी परमाणुओं की रासायनिक शक्तियों का चमत्कार है। राडार यंत्र-यह यंत्र वायुयानों के आगमन की और उनकी गति की सचना भर दे देता है। यह यंत्र इतना सशक्त होता है कि किसी भी दिशा से आ रहे हवाई जहाज का संकेत दे देता है कि जहाज इतनी दूरी से, इतनी गति से आ रहा है? इस प्रकार का बोध जड़ के प्रतिनिधि राडार यंत्र से होता है। ४. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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