________________
६८ कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१)
• जन्म (जाति देहोत्पत्ति) का कारण क्या है ? इसके उत्तर में दोनों दर्शनों ने बताया कि पूर्वशरीर में किये हुए कर्मों का फल-धर्माधर्म जो आत्मा में समवायसम्बन्ध से रहा हुआ है, वही जन्म का-देहोत्पत्ति का कारण है। धर्माधर्मरूप अदृष्ट से प्रेरित पंचभूतों से देह उत्पन्न होता है, पंचभूत स्वतः देह को उत्पन्न नहीं करते।' देहोत्पत्ति में पंचभूत-संयोग नहीं, पूर्वकर्म ही निरपेक्ष निमित्त है ।
.. पंचभूतवादियों का कथन है कि पृथ्वी, जल आदि पंचभूतों के संयोग से ही शरीर बन जाता है, तब देहोत्पत्ति के निमित्तकारण के रूप में पूर्वक मानने की क्या आवश्यकता है ? जैसे पुरुषार्थ करके व्यक्ति भूतों से घर आदि बना लेता है, वैसे ही स्त्री-पुरुष-युगल पुरुषार्थ करके भूतों से शरीर उत्पन्न करता है। अर्थात् स्त्री-पुरुष युगल के पुरुषार्थ से शुक्र-शोणितसंयोग होता है, फलतः उससे शरीर उत्पन्न होता है, तब फिर शरीरोत्पत्ति में पूर्वकर्म को निमित्त मानने की जरूरत ही कहाँ रहती है ? कर्मनिरपेक्ष भूतों से जैसे घट आदि उत्पन्न होते हैं, वैसे ही कर्मनिरपेक्ष भूतों से ही देह उत्पन्न हो जाता है।"२
इसके उत्तर में न्याय-वैशेषिक कहते हैं-घट आदि कर्म-निरपेक्ष उत्पन्न होते हैं, यह दृष्टान्त विषम होने से हमें स्वीकार नहीं है, क्योंकि घट आदि की उत्पत्ति में बीज और आहार निमित्त नहीं हैं, जबकि शरीर की उत्पत्ति में ये दोनों निमित्त हैं। इसके अतिरिक्त शुक्र-शोणित के संयोग से शरीरोत्पत्ति (गर्भाधान) सदैव नहीं होती। इसलिए एकमात्र शुक्रशोणित-संयोग ही शरीरोत्पत्ति का निरपेक्ष कारण नहीं है, किसी दूसरी वस्तु की भी इसमें अपेक्षा रहती है, वह है-पूर्वकर्म। पूर्वकर्म के बिना केवल शुक्र-शोणित-संयोग शरीरोत्पत्ति करने में समर्थ नहीं है। अतः भौतिक तत्त्वों को शरीरोत्पत्ति का निरपेक्ष कारण न मानकर पूर्वकर्म सापेक्ष कारण मानना चाहिए। पूर्वकर्मानुसार ही शरीरोत्पत्ति होती है। जीव के पूर्वकर्मों को नहीं माना जाएगा तो विविध आत्माओं को जो विविध प्रकार का शरीर.प्राप्त होता है, इस व्यवस्था का समाधान नहीं हो सकेगा। अतः शरीरादि की विभिन्नता के कारण के रूप में पूर्वकर्मों को मानना अनिवार्य है।
१. न्यायसूत्र ३/२/६० । २. वही, ३/२/६१ ३. न्यायसूत्र ३/२/६२-६७
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org