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५९४ कर्म - विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप (३)
भगवान् के समक्ष ऐसी सिफारिश या रिश्वतखोरी कर्म के अटल कानून (नियम) के अमल में नहीं चलती। माना कि परीक्षित बड़ा राजा था। उसके राज्य की सुप्रीम कोर्ट भी उसे सजा फरमा नहीं सकती थी । फिर भी उसने इन सबका आश्रय लेकर अपने कठोर क्रियमाण कर्म के प्रारब्ध के फल (मृत्युदण्ड) से बचने की इच्छा नहीं की, बल्कि अपने विरुद्ध स्वयं ने ही अपराध का आरोप लगाया और कठोर सजा की माँग की। यही कारण है कि परीक्षित ने अपने क्रियमाण कर्म का फल = प्रारब्ध स्वयं ने स्वीकार करके भोग लिया जिससे वह कर्म- मुक्त हुआ । '
संचित कर्म तत्काल फल न दे, इसलिए निश्चिन्त मत होआ
कई लोग संचित रूप में सत्ता में पड़े हुए क्रियमाण कर्म के तत्काल फल-प्रदान न करने के कारण निश्चिंत हो जाते हैं और अन्यान्य पापकर्म बेधड़क होकर करते जाते हैं । परन्तु जब उनका वह क्रियमाण संचित कर्म प्रारब्ध के रूप में फल- प्रदान करने के लिए तत्पर होता है, तब वह उसके कठोर दण्डरूप फल से किसी भी हालत में बच नहीं सकते। एक ज्वलन्त घटना : प्रारब्ध कर्म की विचित्रता की
'कर्मनो सिद्धान्त' के विद्वान् प्रवक्ता श्री हीराभाई ठक्कर ने इस सम्बन्ध में एक सच्ची घटना प्रस्तुत की है - वर्षों पहले की बात है। उस समय अहमदाबाद में एक प्रखर विद्वान् सेशन जज थे। जाति से वे नागर ब्राह्मण और चुस्त वेदान्ती थे । वे कर्म के कानून ठोस अध्येता थे। साबरमती नदी के पास ही उनका बंगला था।
एक दिन भोर में हल्के अन्धेरे में ही वे शौचक्रिया के लिए साबरमती नदी के किनारे बैठे; तभी एक मनुष्य दौड़ता दौड़ता उनके पास से होकर गुजरा। उसकी पीठ में पीछे से आकर किसी मनुष्य ने तलवार का प्रहार किया। फलतः वह घायल होकर धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा और तत्काल मरण-शरण हो गया। इस घटना को सेशन जज ने अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देखा। हत्यारा भाग गया; किन्तु जज ने उसे भलीभाँति पहचान लिया था।
सेशन जज घर आए। परन्तु इस घटना का जिक्र उन्होंने किसी के आगे नहीं किया, क्योंकि वे जानते थे कि यह हत्या का मामला, अन्त में तो उनकी कोर्ट में आने ही वाला है । फिर उस केस की पुलिस इन्क्वायरी शुरू हुई। छह महीने में पूरी इन्क्वायरी पूर्ण हुई। हत्या का केस दाखिल किया। सेशन जज ने इस केस का अध्ययन किया तो प्रतीत हुआ कि जो असली हत्यारा था, जिसे उन्होंने प्रत्यक्ष हत्या करते देखा था, उसके बदले पुलिस
१. 'कर्मनो सिद्धान्त' से पृ. ११-१२
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