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________________ ४९० कर्म-विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप (३) . कर्म और नोकर्म में अन्तर का स्पष्टीकरण तत्त्वार्थ राजवार्तिक में कर्म और नोकर्म के अन्तर को स्पष्ट करते हुए कहा गया है-“आत्मा के योग (मन-वचन-कायाजन्य प्रवृत्तियों) परिणाम के द्वारा जो किया जाता है, उसे कर्म कहते हैं, यह (कम) आत्मा को परतंत्र बनाने का मूल कारण है। कर्म के उदय से प्राप्त औदारिक शरीर आदि रूप पुद्गल-परिणाम, जो आत्मा के सुख-दुःख-बलाधान में सहायक कारण होता है, वह 'नोकर्म' कहलाता है। स्थिति के भेद से भी कर्म और नोकर्म में अन्तर है।" नोकर्म का लक्षण ___ 'अध्यात्मरहस्य' में नोकर्म का लक्षण भी इसी से मिलता-जुलता किया गया है-“संसारी जीवों के कर्मों के उदय से उनके अंगादि (शरीर और पर्याप्तियों) की वृद्धि-हानि के रूप में जो पुद्गल परमाणुओं का समूह परिणत होता है, वह नोकर्म कहलाता है। नोकर्म : कर्मविपाक में सहायक सामग्री "प्रज्ञापना सूत्र" की वृत्ति में नोकर्म को कर्मविपाक की सहायक सामग्री बताते हुए कहा गया है "कई बाह्य द्रव्य भी कर्मों के उदय और क्षयोपशम आदि में सहायक कारण देखे जाते हैं। जैसे-ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम में बाह्य औषधि (ब्राह्मी, बादाम, सरस्वतीचूर्ण आदि) सहायक निमित्त होती है, इसी प्रकार मदिरापान ज्ञानावरणीयकर्म के उदय में सहायक निमित्त बनता है। ऐसा न हो तो, औषधि से युक्तायुक्तविवेक और सुरापान से विवेकविकलता क्यों होती है ?" १. “अत्राह-कर्म-नोकर्मणः कः प्रतिविशेषः ? उच्यते-आत्मभावेन योग- भाव लक्षणेन क्रियते इति कर्म। तदात्मनोऽस्वतंत्रीकरणे मूलकारणम्। तदुदयापादितः पुद्गल-परिणाम आत्मनः सुख-दुःख-बलाधान हेतुः औदारिकशरीरादिः ईषत्कर्म नोकर्मत्युच्यते। किं च स्थितिभेदादभेदः ।" -तत्त्वार्थ राजवार्तिक ५/२४/४८८/२० २. अध्यात्म-रहस्य गा. ६३ ३. (क) कर्ममीमांसा (स्व. युवाचार्य श्री मधुकर मुनि) से पृ. ३० (ख) “बाह्यान्यपि द्रव्याणि कर्मणामुदय-क्षयोपशमादि-हेतव उपलभ्यन्ते। यथा बाह्योषधिआनावरण-क्षयोपशमस्य सुरापान ज्ञानावरणोदयस्य, कथमन्यथा युक्तायुक्तविवेक-विकलतोपजायते॥" । -प्रज्ञापना पद १७ वृत्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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