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१८ . कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१)
२१. बाधक प्रमाण के अभाव से आत्मा की अस्तित्व सिद्धि-. अनात्मवादियों का कहना है कि आत्मा को सिद्ध करने वाला कोई कारण नहीं है। किन्तु यह 'अकारणत्वात्' हेतु असिद्ध, विरुद्ध और अनैकान्तिक दोषयुक्त है। ऐसा कोई प्रमाण या कारण नहीं, जो आत्मा के अस्तित्व का अभाव सिद्ध करता हो; क्योंकि मनुष्य, नारक आदि पर्यायों में कर्मसंयुक्त आत्मा मिलती है, इन पर्यायों की उत्पत्ति मिथ्यादर्शनादि पांच कारणों से होती है। इसलिए आत्मा का अस्तित्व असिद्ध नहीं है। उनका यह हेतु विरुद्ध भी है, क्योंकि यह हेतु आत्मा का अभाव सिद्ध न करके, सद्भाव ही सिद्ध करता है। सभी घटादि पदार्थ स्व-भाव से सत् हैं। सत् होता है, वह अकारण होता है, कारणविशेष से नहीं होता। अतः आत्मा के अस्तित्व का निषेध करने वाला कोई बाधक प्रमाण नहीं है। इन्द्रियों द्वारा आत्मा का ग्रहण न होना, उसका बाधक प्रमाण नहीं हो सकता। बाधक प्रमाण वही हो सकता है, जो उस विषय को जानने की शक्ति रखता हो, लेकिन अन्य सब सामग्री रहने पर भी उसे ग्रहण न कर सके। इन्द्रियाँ भौतिक-रूपी पदार्थों में से जो स्थूल, निकटवर्ती और नियत हों, उन्हीं विषयों को ही जान सकती हैं, इसलिए उनका अभौतिक-अमूर्त आत्मा को जान-देख न सकना बाधक नहीं कहा जा सकता। मन सूक्ष्म, भौतिक एवं चंचल होने से वह भी अतीन्द्रिय अमूर्त आत्मा को नहीं देख-जान सकता। सूक्ष्मदर्शक यंत्रों का भी यही हाल है। अतः मन, इन्द्रियाँ आदि सभी साधन भौतिक होने से आत्मा के अस्तित्व का निषेध करने की शक्ति नहीं रखते।'
२२. प्राणापान कार्य द्वारा आत्मा की अस्तित्व सिद्धि-तत्त्वार्थ-सर्वार्थसिद्धि में कहा गया है-जिस प्रकार यंत्रमूर्ति की चेष्टाओं से उसके प्रयोग का अस्तित्व सिद्ध होता है, उसी प्रकार श्वासोच्छवासरूप क्रिया से क्रियावान् आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है।
२३. शरीर का कर्ता होने से आत्मा सिद्ध है-प्रत्यक्ष दृश्यमान शरीर घट की तरह सादि और नियत आकार वाला है, इसलिए घट के कर्ता के समान देह का भी कोई कर्ता होना चाहिए। जिसका कोई कर्ता नहीं होता, उसकी आदि एवं नियत आकृति भी नहीं होती, जैसे आकाश। आकाश सादि एवं १ (क) तत्त्वार्थ राजवार्तिक २/८/१८
(ख) प्रवचनसार गा. १० एवं १८, पंचास्तिकाय गा. १५
(ग) कर्मग्रन्थ भा. १ प्रस्तावना (मरुधर केसरी मिश्रीमल जी म.) २ (क) तत्त्वार्थ सर्वार्थसिद्धि टीका (आचार्य पूज्यपाद) ५/१९
(ख) स्याद्वाद मंजरी, कारिका १७
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