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________________ कर्मवाद का तिरोभाव- आविर्भाव : क्यों और कब २६७ दूसरी बात यह है, जीवों में उत्कृष्ट मानव है, परन्तु वह भी जीव ही रहता है, चाहे वह उच्च कोटि की साधना करले, चाहे कितने ही तप, संयम का आचरण करले, वह परमात्मा नहीं बन सकता है। नौकर चाहे जितना ऊँचा वेतन पा ले, चाहे जितना उच्चकोटि का कार्य करले, वह नौकर ही रहता है, मालिक नहीं बन सकता। इसी प्रकार जीव चाहे जितनी क्रियाएँ, तपस्याएँ एवं अर्चना- प्रार्थना करले, अपना सर्वोच्च विकास करके ईश्वर नहीं हो सकता। 'ईश्वर की कृपा के बिना संसार सागर से कोई भी जीव पार नहीं हो सकता। इसी प्रकार वैदिक परम्परा की ईश्वर - सम्बन्धी मान्यताएँ भगवान् महावीर के कर्म-सिद्धान्त के बिल्कुल विपरीत एवं युक्तिविरुद्ध प्रतीत हुईं। इन मान्यताओं में उन्हें मुख्यतः तीन भूलें दृष्टिगोचर हुई - (१) कृतकृत्य ईश्वर का निष्प्रयोजन सृष्टि की रचना आदि कार्यों में हस्तक्षेप करना, (२) आत्मा की शक्ति एवं स्वतंत्रता का ईश्वर के नीचे दब जाना, सब कार्यों में ईश्वराधीनता स्वीकारना और (३) कर्म की प्रचण्ड शक्ति के चमत्कार का अबोध । इन्हीं तीन भूलों का परिमार्जन करने और संसार के समक्ष वस्तुस्थिति का यथार्थ प्रतिपादन करने के लिए भगवान् महावीर ने कर्मवाद का रहस्य प्रकट किया। ईश्वर द्वारा सृष्टि का सृजन मानना, कृतकृत्य और सिद्ध-बुद्ध सर्वकर्ममुक्त, निरंजन - निराकार ईश्वर को व्यर्थ ही संसार के प्रपंच में और जन्म-मरणरूप संसार के कारणभूत कर्मों के पचड़े में डालना है। ईश्वर जब कृतकृत्य और कर्मों से सर्वथा मुक्त हो गया, तब उसे सृष्टि की रचना करने की क्यों आवश्यकता पड़ी? सृष्टि की रचना किये बिना ईश्वर को क्या तकलीफ थी ? फिर रचना भी की तो, ऐसी सृष्टि क्यों बनाई, जिसमें आधि, व्याधि और उपाधि से प्राणी पीड़ित होते रहें? जिसमें कामनाओं और वासनाओं की ज्वालाएँ धधक रही हो, जहाँ शान्ति की सुव्यवस्था का नामोनिशान न हो, जहाँ दुःख ही दुःख व्याप्त हो ? यदि ईश्वर ही सर्वेसर्वा है, उसी की प्रेरणा से संसार में सब कुछ होता है, वह सर्वशक्तिमान है, तो • जनजीवन के दुःखों की भट्टी जलाने का काम क्या उसी की प्रेरणा से हुआ है? चोर और डाकू भी क्या उसी की प्रेरणा से चोरी और डकैती करते हैं ? आततायी, गुंडे और व्यभिचारी लोग क्या उसी की प्रेरणा से निर्दोष अबलाओं का शीलभंग एवं उनके साथ बलात्कार करते हैं ? कसाई क्या .. उसी की प्रेरणा से पशुओं की गर्दनों पर छुरियाँ चलाता है ? अतः न तो ऐसे किसी क्रूर व्यक्ति को ईश्वर कहा जा सकता है और न ही सर्वशक्तिमान होकर तथाकथित ईश्वर ऐसा कर सकता है। अतः यही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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