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________________ १९२ कर्म - विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) इन कृत्यों का फल तत्काल कहाँ मिलता है ? यह तो सबका अनुभव है कि आज का बोया हुआ बीज़ काफी समय के बाद वृक्ष बनता है। आज का जमाया हुआ दूध कल या कम से कम चार-पाँच घंटे बाद दही बनता है। आज ही पढ़ना शुरू करने वाला आज़ का आज ही कहाँ विद्वान् बन जाता है ? आज से व्यायाम करना प्रारम्भ करने वाला आज ही कहाँ भीम या हनुमान जैसा बलिष्ठ और राममूर्ति; गामा या सेंडो के समान पहलवान बन जाता है ? आज से ही यम-नियम की साधना प्रारम्भ करने वाला आज ही नहीं, कभी - कभी एक जन्म में भी नहीं, कई जन्मों के पश्चात् सिद्धि प्राप्त कर पाता है। भगवद्गीता में भी कहा गया है- “अनेक जन्मों के पश्चात् सम्यक् सिद्धि प्राप्त होती है, और तत्पश्चात् जीव परा-गति (मोक्षगति) को प्राप्त होता है।" अतः यह नियम एकान्तरूप से लागू नहीं होता कि कर्म करते ही उसका फल तुरंत ही मिल जाए। भूमि में बीज डालते ही तुरंत वह अंकुरित नहीं हो जाता, न ही फूल-फल देने लगता है। कदम उठाते ही कोई अपने: गन्तव्य स्थान तक नहीं पहुँच जाता। यात्रा प्रारम्भ करते ही कोई अपने निर्धारित स्थान पर नहीं पहुँच जाता। भोजन पेट में डालते ही तुरंत पच नहीं जाता, उसे पचने में भी काफी समय लग जाता है।' व्यवसाय शुरू करते ही प्रारम्भ में कहाँ जम पाता है ? व्यवसायी एक ही दिन में कहाँ व्यवसाय जगत में प्रसिद्ध होता है? इसी प्रकार क्या नेता, क्या अभिनेता, क्या राजनेता, सभी एक ही दिन में नेतृत्व, अभिनेतृत्व या राजनेतृत्व नहीं करने लग जाते। उन्हें भी समय पक जाने पर लोग परखते हैं, तभी नेता, अभिनेता या राजनेता मानते हैं। कृषक फल न मिलने पर भी आशा और विश्वास नहीं छोड़ता किसान बीज बोते समय इसी आशा और विश्वास के साथ बोता है कि यह बीज एक दिन अंकुरित, पुष्पित फलित होगा । वह धैर्य के साथ असंदिग्ध मन से प्रतीक्षा करता है और एक दिन अपने पुरुषार्थ का फल स्वयं देखता है। यद्यपि बीज बोने से लेकर फसल काटने तक किसान डटकर पुरुषार्थ करता है, फिर भी कदाचित् अन्न पैदा नहीं होता, या १. (क) अखण्ड ज्योति जून १९७७ (ख) समतायोग (रतनमुनि) से सार-संक्षेप (ग) अनेक जन्म- संसिद्धिस्ततो याति परां गतिम् Jain Education International - - भगवद्गीता अ. ४, श्लोक ४५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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