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________________ 2. भगवान श्री महावीर का उदात्त चिन्तन/एवं तत्व दर्शन जीव मात्र के अभ्युदय एवं निःश्रेयस का मार्ग प्रशस्त करता है। यही वह परम पथ है, जिस पर चलकर मानव शान्ति और सुख की प्राप्ति कर सकता है। वर्षों से मेरी भावना थी कि भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित अध्यात्म एवं तत्वचिन्तन को सरल शैली में प्रामाणिक दृष्टि से जन-जन के समक्ष प्रस्तुत किया जाय। अपने उत्तराधिकारी विद्वान चिन्तक उपाचार्य देवेन्द्रमुनि जी के समक्ष मैंने अपनी भावना व्यक्त की, तब उन्होंने मेरी भावना को बड़ी श्रद्धा और प्रसन्नता के साथ ग्रहण किया. शीघ ही आपने जैन नीतिशास्त्र, अप्पा सो परमप्पा, सद्धा परम दुल्लहा, जैसे गंभीर विषयों पर बहुत सुंदर सरस साहित्य प्रणयन करके मेरी अन्तर भावना को साकार किया, मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। ___अब आपने कर्मविज्ञान नामक महत्वपूर्ण ग्रन्थ का सृजन कर जैन साहित्यश्री को श्रृंगारित किया है। कर्मवाद जैसे गहन और अतीव व्यापक विषय पर इतना सुन्दर, आगमिक तथा वैज्ञानिकदृष्टि से युक्तिपुरस्सर विवेचन उन सबके लिए उपयोगी होगा जो आत्मा एवं परमात्मा; बंधन एवं मुक्ति तथा कर्म और अकर्म की गुत्थियां सुलझाना चाहते हैं। मैने इस ग्रन्थ के कुछ मुख्य-मुख्य अंश सुने, बहुत सुन्दर लगे। मुझे विश्वास है, उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनि जी का यह विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ जैन साहित्य की एक मूल्यवान मणि सिद्ध होगी। -आचार्य आनन्दऋषि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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