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कर्म का अस्तित्व कब से और कब तक ? १७७
एकमेक से दिखते हैं, किन्तु स्वर्णकार द्वारा वह मिट्टी-मिश्रित स्वर्ण आग में तपाया-गलाया जाता है, तो स्वर्ण में से मिट्टी आदि मैल कट-छटकर अलग हो जाता है; तब स्वर्ण और मिट्टी का जो अनादि-सम्बन्ध था, वह टूट जाता है, अशुद्ध स्वर्ण शुद्ध हो जाता है। इसी प्रकार आत्मा और कर्म का सम्बन्ध भी अनादिकाल से चला आ रहा है। जीव अपने पूर्वकृत कर्मों का परिभोग करता रहता है और नये कर्मों का बन्धन भी करता रहता है। कर्मबन्धम की यह प्रक्रिया अनादिकालीन होते हुए भी चैतन्यवान जीव अपने पुरुषार्थ के द्वारा कर्मों को बिलग करके अपने अमूर्त, शुद्ध, निरंजन, निराकार, अनन्तज्ञानादि चतुष्टय रूप स्वरूप को प्रकट कर सकता है।
स्पष्ट शब्दों में कहें तो कर्म और आत्मा का सम्बन्ध अनादि होने पर भी उसे तप, त्याग, व्रत, संयम आदि की साधना से तोड़ा-काटा जा सकता
चार प्रकार के सम्बन्ध ___ आत्मा और कर्म के सम्बन्ध के रहस्य को समझने के लिए हमें सर्वप्रथम इन चार प्रकार के सम्बन्धों का परिज्ञान कर लेना चाहिए। सम्बन्ध चार प्रकार के होते हैं-(१) अनादि-अनन्त, (२) अनादि-सान्त, (३) सादि-अनन्त और (४) सादि-सान्त। जिस सम्बन्ध का न तो आदिकाल हो, न ही अन्तकाल, वह अनादि-अनन्त होता है। जिसका आदिकाल तो न हो, किन्तु अन्तकाल हो, वह अनादि-सान्त होता है। जिसका आदिकाल हो, पर अन्तकाल न हो, वह सादि-अनन्त होता है, और जिसका आदिकाल भी हो तथा अन्तकाल भी, वह सम्बन्ध सादि-सान्त होता है।' आत्मा और कर्म का तीन प्रकार का सम्बन्ध
आत्मा और कर्म का सम्बन्ध कब से है और कब तक रहेगा ? इस प्रश्न का समाधान जैनदर्शन ने इस प्रकार किया है- 'आत्मा और कर्म का सम्बन्ध अनादि-अनन्त भी है, अनादि-सान्त भी है, और सादि-सान्त भी'।२
१. ज्ञान का अमृत (पं. ज्ञानमुनि जी) से पृ. ३६ २. गोयमा ! अत्येगइयाणं जीवाणं कम्मोवचए सादीए सपज्जवसिए, अत्येगइए
अणादीए सपज्जवसिए, अत्येगइए अणादीए अपज्जवसिए; नो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए सादीए अपज्जवसिए । से केणटेणं ? गोयमा! इरियावहिय बंधयस्स कम्मोवचए सादीए सपज्जवसिए, भवसिद्धियस्स कम्मोवचए अणादीए सपज्जवसिए, अभवसिद्धियस्स कम्मोवचए अणादीए अपज्जवसिए, से तेणटेणं ।
-भगवतीसूत्र श. ६, उ. ३
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