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जी जैन जी के साथ बड़ी लग्न उत्साह और ईमानदारी से प्रारम्भ किया। आपकी प्रतिभा व लग्न रंग लाई और एक दिन आपको ३५ वर्ष की अल्पायु में ही १९७५ में भारत के राष्ट्रपति श्री बी. डी. जत्ती द्वारा "सेल्फ मेड इन्डस्ट्रिलिस्ट" "उद्योग पत्र" से सम्मानित किया गया। सन् १९८६ में आपकी धर्मपत्नी श्रीमती इन्दिरा जैन का स्वर्गवास हो गया। तत्पश्चात समाज की भावना का आदर करते हुए आपने विदुषी डा. विद्युत जैन के साथ आर्दश विवाह किया।
आपने न केवल औद्योगिक क्षेत्र में ही अपनी प्रतिभा दिखाई, बल्कि सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक आदि क्षेत्रों में अपने नम्रता, शालीनता, दानशीलता आदि गुणों के कारण विभिन्न पदों पर रह कर समाज, धर्म, देश व उद्योग की अविस्मरणीय सेवाएं की। आप अ. भा. श्वे. स्था. जैन कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष हैं। तथा बीसों संस्थाओं के अध्यक्ष, संरक्षक आदि हैं।
इस तरह आप समाज सेवा देश सेवा करते हुये व अपने निजी व्यापार की अति व्यस्तता के बाद भी वृद्धजन, मुनिश्रमणी जनों की वैयावृत्य व अतिथि- सेवा में संलग्न रहते हैं। दान, धर्म, विनय आपके व्यक्तित्व के विशिष्ट गुण हैं। समाज एवं व्यापार उद्योग क्षेत्र में अति व्यस्त रहते हुए भी आप प्रतिदिन प्रातः एक सामायिक करते हैं। तथा रात्रि भोजन का भी नियम रखते हैं जो सभी कार्यकर्ताओ के लिए आदर्श है। आपने अनेक धार्मिक संस्थाओं की नींव रखी है, जैसे
१. श्री जैन स्थानक, शहादरा, दिल्ली ।
२. श्री जैन स्थानक, लक्ष्मीनगर, दिल्ली । ३. श्री जैन स्थानक, बड़ोदा, (हरियाणा)
४. श्री जैन स्थानक, गाजियाबाद ।
५. जैन साध्वी पद्मा विद्यानिकेतन, शास्त्री पार्क, दिल्ली ।
आदि धार्मिक एवं सेवाभावी संस्थाओं का शिलान्यास कर आप सेवा, शिक्षाप्रेम आदि सद्गुणों का समय-समय पर परिचय देते रहते हैं। आप सभी जैन सम्प्रदायों के परस्पर मतभेद को समाप्त कर उसे भगवान महावीर के आश्रय में एक ही प्लेट फार्म पर लाकर समाज व देश को सुदृढ़ बनाने में संलग्न है।
आपके दो सुपुत्र हैं : यशदेव जैन तथा हर्षवर्धन जैन । हम आशा करते हैं कि आर्दश पिता के आदर्श गुण पुत्रों में भी जीवन्त होते रहेंगे और वे भी समाज एवं राष्ट्र की सेवा में अग्रसर होगें ।
• शुभाशा
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