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________________ ९८ कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) जाएँगी, उतनी ही उनकी संवेदनाएँ फीकी और स्मृतियाँ धुंधली पड़ती जाएँगी। 'आत्मरहस्य' में प्रकाशित पूर्वजन्म-स्मृति की घटना "श्री रतनलालजी जैन ने 'आत्म-रहस्य' नामक पुस्तक में देश-विदेश की पूर्वजन्म-पुनर्जन्म से सम्बन्धित कई घटनाएँ अंकित की हैं। बरेली की एक घटना सन् १९२६ की है। वहाँ कैकयनन्दन वकील के यहाँ एक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह बालक ५ वर्ष का हुआ और बोलना सीख गया तो वह अपने पूर्वजन्म की बातें बताने लगा कि पूर्वजन्म में मैं बनारस-निवासी बबुआ पाण्डे का पुत्र था। उसके पिता श्री कैकयनन्दन कई मित्रों के साथ उस बालक को बनारस ले गए और बालक के बतलाये हुए स्थान पर गए। उस समय बनारस के जिलाधीश श्री बी. एन. मेहता भी उपस्थित थे। बबुआ पाण्डे तथा उस मोहल्ले के एकत्रित सज्जनों को उनके नाम ले लेकर वह बालक पुकारने लगा और अनेक प्रश्न भी पूछने लगा कि अमुक-अमुक वस्तुएँ कहाँ हैं ? और कैसी हैं ? उक्त बालक का बतलाया हुआ पूर्वजन्म का वृत्तान्त बिलकुल सच निकला।"२ नौ जन्मों की स्मृति की आश्चर्यजनक घटना परामनोवैज्ञानिकों ने एक ही जन्म नहीं, नौ-नौ जन्मों तक की स्मृति की घटनाएँ संग्रहीत की हैं। इस सन्दर्भ में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सवर्ग की एक घटना है-पिता एडवर्ड बर्वे और माता कैरोलिन फ्रांसिस एलिजाबेथ की पुत्री 'जोय बर्वे की। दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सवर्ग स्थित 'विट्टाटर स्ट्रैण्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर्थर ब्लेकस्ले ने 'साइकिक रिसर्च के क्षेत्र में प्रयोग के दौरान तेरह वर्षीय जोय बर्वे की विचित्रताओ की बात ज्ञात होने पर जाँच-पड़ताल शुरू की। यों तो 'जोय' जब ढाई वर्ष की थी, तभी से वह पूर्वजन्म-परिचित वस्तुओं का स्मरण करके अति प्राचीन ऐतिहासिक दृश्यों और वस्तुओं के चित्र बनाने लगी थी। उसकी इस शक्ति का प्रचार तब से हुआ, जब १२ वर्ष की आयु में वह क्रूगर हाउस नामक भवन देखने गयी, जहाँ १९ शताब्दी में वहाँ का गणतन्त्र-प्रधान 'ओम पॉल' रहता था। 'जोय' ने ओम पॉल से सम्बन्धित सारी ऐतिहासिक घटनाएँ क्रमबद्ध बताई, जे १. (क) अखण्ड ज्योति, जुलाई, १९७४ से सारांश पृ. १२ ___ (ख) जैनदर्शन में 'आत्म विचार' (डॉ. लालचन्द्र जैन) पृ. २२२ २. महाबन्धो पुस्तक २ की प्रस्तावना (पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री) से पृ. ११ ३. अखण्ड ज्योति, फरवरी १९७५, के 'पुनर्जन्म सिद्धान्त को भलीभांति समझा जाय लेख से सारांश पृ. ३४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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