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९२ - कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१)
१. किसी-किसी को मृत्यु होने से पूर्व अथवा किसी को अकस्मात् है। भविष्य में घटित होने वाली घटना का पहले से ही आभास (पूर्वाभास) हो जाता है।
२. भविष्य के ज्ञान की तरह अतीत (पूर्वजन्म या पूर्वजन्मों) का ज्ञान हो सकता है।
३. किसी-किसी को किसी भी माध्यम के बिना प्रत्यक्षज्ञान हो जाता है, अर्थात्-किसी वस्तु या व्यक्ति के विषय में वह साक्षात् जान लेता है।
४. बिना किसी माध्यम के एक व्यक्ति हजारों कोस दूर बैठे हुए व्यक्ति को अपने विचार प्रेषित (विचार-सम्प्रेषण) कर सकता है। पुनर्जन्म की सिद्धि के साथ आत्मा और कर्म का अनादि अस्तित्व भी सिद्ध : .
परामनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगसिद्ध इन चार तथ्यों के आधार पर उन लोगों को भी यह सोचने के लिए बाध्य होना पड़ा, जो यह मानते थे, किं मृत्यु के बाद जीवन नहीं है। आत्मा और कर्म का अस्तित्व नहीं है। या आत्मा और कर्म इस जन्म तक ही हैं, उनका चिरकाल स्थायित्व नहीं है। ईसाई और इस्लाम धर्म पुनर्जन्म को नहीं मानते हैं। इसलिए यदि कोई बालक उस तरह की बात करे तो उसे शैतान का प्रकोप समझकर उसे डरा-धमकाकर उसका मुंह बंद कर दिया जाता है। परन्तु मिथ्या-कल्पना, अन्ध-विश्वास और किंवदन्तियों की सीमाओं को तोड़कर प्रामाणिक व्यक्तियों के द्वारा किये गए अन्वेषणों से ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं, जिनसे पूर्वजन्म और पुनर्जन्म, दोनों तथ्य भलीभांति सिद्ध हो जाते हैं। परामनोवैज्ञानिकों ने उनकी आँखें खोल दी हैं, और उन्हें यह मानने को बाध्य होना पड़ा है कि पूर्वजन्म भी है और पुनर्जन्म भी है। आत्मा और कर्म का अस्तित्व भी चिरस्थायी है।"२ ईसाई-परिवार से सम्बद्ध पूर्वजन्म-स्मृति की घटना
कोपनहेगन (डेनमार्क) की एक सात वर्षीय ईसाई परिवार की लड़की लीना मार्कोनी अपने पूर्वजन्म की स्मृति का विवरण बताती थी। वह अपने को पिछले जन्म की फिलीपीन-निवासी किसी होटल-मालिक की 'मारिया एस्पिना' नामक पुत्री कहती थी। ग्यारह वर्ष की उम्र में वह मरी और फिर
१. (क) 'घट-घट दीप जले' से पृ. ५७
(ख) अखण्ड ज्योति, जुलाई १९७४, के लेख से सारांश २. अखण्ड ज्योति जुलाई, १९७४, के लेख पर से पृ. ११-१२
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