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________________ कर्म-अस्तित्व के मूलाधार : पूर्वजन्म और पुनर्जन्म-२ ८५ वह इतनी छोटी उम्र में जर्मन भाषा के ग्रन्थ पढ़ने लग गया था, तथा गणित के सामान्य प्रश्नों को हल करने लगा था। उसने फ्रेंच भाषा भी अच्छी तरह सीख ली थी।' ____ संसार के इतिहास में ऐसी जन्मजात प्रतिभा लेकर उत्पन्न हुए बालकों की संख्या बहुत बड़ी है। साइबरनैटिक्स विज्ञान का आविष्कारक ‘वीनर' अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय ५ वर्ष की आयु से ही देने लगा था। उस समय भी उसका मस्तिष्क प्रौढ़ों जैसा विकसित था। वह युवा वैज्ञानिकों की पंक्ति में बैठकर उसी स्तर के विचार व्यक्त करता था। उसने १४ वर्ष की आयु में स्नातक (एम. ए.) परीक्षा पास करली थी। इसी तरह का एक बालक 'पास्काल' १५ वर्ष की आयु में एक प्रामाणिक ग्रन्थ लिख चुका था। मोजार्ता सात वर्ष की आयु में संगीताचार्य बन गया था। गेटे ने ९ वर्ष की आयु में यूनानी, लैटिन और जर्मन भाषाओं में कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया था। पूर्वजन्म पुनर्जन्म का स्वीकार ः मानव जाति के लिए आध्यात्मिक उपहार इस प्रकार के अनेकानेक प्रमाण आए दिन हमारे पढने-देखने में आते हैं। इनसे पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की मान्यता की पुष्टि होती है। मरणोत्तर जीवन के अस्तित्व का अस्वीकार करने वाले तथा नास्तिक लोगों के पास पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म को माने बिना इसका कोई समाधान नहीं है। बल्कि आज पुनर्जन्म और पूर्वजन्म का स्वीकार करना मानव जाति की अनिवार्य आवश्यकता है। इसके बिना परिवार, समाज एवं राष्ट्र में नैतिकआध्यात्मिक मूल्यों को स्थिर नहीं किया जा सकता। अतः इस तथ्य-सत्य को जानकर कि आत्मा का अस्तित्व शरीरत्याग के बाद भी बना रहेगा, वह जन्म-जन्मान्तर में संचित शुभ-अशुभ कर्मों को साथ लेकर अगले जन्म में जाता है, उससे जुड़े हुए ज्ञानादि के संस्कारसमूह भी जन्म-जन्मान्तर तक धारावाहिक रूप से चलते रहते हैं। अतः इस जन्म में आध्यात्मिक विकास में पलभर भी प्रमाद न करके श्रेष्ठता की दिशा में सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय के पथ पर कदम बढ़ाना चाहिए। पुनर्जन्मवादी इस जीवन का उत्तम ढंग से निर्माण करते हैं जिससे उनका अगला जीवन भी उत्तरोत्तर अध्यात्मविकास के सोपान पार करके उत्तमोत्तम बनता है। उत्तराध्ययन सूत्र के नमिप्रव्रज्या अध्ययन में इसी तथ्य को प्रस्तुत किया गया है। पुनर्जन्म में १. अखण्डज्योति, जुलाई १९७४ से सारांश, पृ. १३ २. वही, जुलाई १९७४ से, पृ. १४ ३. अखण्डज्योति जुलाई १९७९ से सारांश, पृ. ११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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