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________________ -६. ९९] मोक्षप्राभृतम् ६७३ सत्या दंडवदुपविश्यते, श्रावकादिकश्छात्रादिको वा जलं नामयति, सर्वाङ्गप्रक्षालनं क्रियते, स्वयं हस्तमर्दनेनाङ्गमलं न दूरीक्रियते, स्नाने संजाते सति उपवासो गृह्यते, पंचनमस्कारशतमष्टोत्तरं कायोत्सर्गेण जप्यते एवं शुद्धिर्भवति । एवं मूलगुणं छित्वा । (बाहिरकम्मं करेइ जो साहू ) बहिःकर्म आतपनयोगादिकं यः साधुःकरोति । ( सो ण लहइ सिद्धिसुहं ) स साधुःसिद्धिसुखं मोक्षसौख्यं न लभते न प्राप्नोति । (जिर्णालगविराधगो णिच्चं ) स साधुनिलिंगविराधको भवति, कथं ? नित्यं सर्वकालं। कि काहिदि बहिकम्मं किं काहिदि बहुविहं च खवणं च । कि काहिदि आदावं आदसहावस्स विवरीदो ॥१९॥ किं करिष्यति बाह्यकर्मे किं करिष्यति बहुविधं च क्षमणं च । किं करिष्यति आतापः आत्मस्वभावाद्विपरीतः ॥१९॥ ( किं काहिदि बहिकम्मं ) किं करिष्यति-न किमपि करिष्यति, मोक्षं न करिष्यति, किं तत् ? बहिष्कर्म पठनपाठनादिकं प्रतिक्रमणादिकं च । ( किं काहिदि बहुविहं च खवणं च ) किं करिष्यति--- किमपि करिष्यति, न मोक्षं दास्यति । .wwwwammmmmmmmmmmmmwr अथवा विष्ठा पर पैर पड़ जाय अथवा शरीर के ऊपर कौआ बीट कर दे तो स्नानका प्रसङ्ग होता है। परन्तु इस स्थिति में मुनि दण्डके समान सीधे बैठ जाते हैं और भावक अथवा छात्र आदिक जल डालते हैं तथा 'उनके सर्व शरीर का प्रक्षालन करते हैं मुनि स्वयं हाथ से मीठ कर शरीर का मैल दूर नहीं करते हैं । स्नान हो चुकने पर मुनि उस दिनका उपवास - लेते है और खड़े होकर पञ्च नमस्कार मन्त्र का एकसौ आठ बार जाप " करते हैं । इस तरह शुद्धि होती है। . उक्त मूलगुणों को छेदकर अर्थात् उनमें दोष लगाकर जो साधु . आतापन योग आदि बाह्य कार्य करता है वह सिद्धि सुख-मोक्ष सुखको नहीं प्राप्त करता । वह निरन्तर जिन लिङ्ग की विराधना करने वाला ' माना गया है ।। ९८॥ गावार्थ-जो साधु आत्मस्वभावसे विपरीत है मात्र बाह्य कर्म उसका क्या कर देगा? नाना प्रकार का उपवासादि क्या कर देगा ? और आतापन योग क्या कर देगा? अर्थात् कुछ नहीं ॥ ९९ ॥ .. विशेषा-पठन-पाठन तथा प्रतिक्रमण आदि बाह्य कर्म उस साधुका क्या कर देंगे जो आत्मस्वभाव से विपरीत है । नाना प्रकार के उपवास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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