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________________ ६६८ पद्माभूले [ ६.९३ पतयोगपेत्यादि - कुत्सितलिंगं च वन्दते नमस्करोति अभिवादनं विदधाति नमोनारायणमिति वाचा प्रणमति मस्तकेन वन्दे इति प्रणमति यस्तु पुमान् । ( लज्जाभयगारवदो ) लज्जया कृत्वा भयेन च गारवेण गर्वेण च यो वन्दते । (मिच्छादिट्ठी हवे सो हु ) मिथ्यादृष्टिर्भवति सः । कथं ? हु-स्फुटं । सपरावेक्खं लिंगं राई देवं असंजयं वंदे | माणइ मिच्छाविट्टी ण हु मण्णइ सुद्धसम्मतो ॥९३॥ स्वपरापेक्षं लिङ्गं रागिणं देवं असंयतं वन्दे । मानयति मिथ्यादृष्टि: न हि मानयति शुद्धसम्यक्त्वः ॥९३॥ ( सपरावेक्खं लिगं ) स्वपरापेक्षं लिंगं, स्वापेक्षं ऋषिपत्नीयुतं परापेक्षं रक्तवस्त्रमृगचर्मादि सापेक्षं लिंगं वेषं । ( राई देवं असंजयं वंदे ) रागिणं देवं पार्वतीपति लक्ष्मीकान्तं तिलोत्तमामुखकमलप्रघट्टकचतुर्वक्त्रं चेत्यादिकं देवं, असंजयं वंदे - असंयतं अनेक मानुषमांसदधि भक्षणमुख 'भक्षकं वन्दे इति यो वक्ति । ( माणइ मिच्छादिट्ठी ) मानयति मिथ्यादृष्टिः श्रद्दधाति मिथ्यादृष्टि जिनानाम रत्नोंको पूजना, घोड़ा आदि वाहनों की पूजा करना, भूमि की पूजा करना, खड्ग की पूजा करना, पर्वत की पूजा करना तथा घी में मुख देखना आदि कुधर्मं कहलाता है । नग्नाण्डक, जटाधारी पञ्चशिव एकदण्डी, त्रिदण्डी, शिखाधारी सोगत, पाशुपत तथा यौगप आदि वेष कुलिङ्ग कहलाते हैं । जो मनुष्य लज्जा भय अथवा गारव से इन सबको नमस्कार तथा अभिवादन आदि मन वचनकाय से करता है वह मिथ्यादृष्टि होता है ॥९२॥ गाथार्थ - -स्व और पर की अपेक्षा से सहित लिङ्गको तथा रागी और असंयत देवकी वन्दना करता हूँ ऐसा मिथ्यादृष्टि जीव मानता है शुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव नहीं ॥९३॥ विशेषार्थ - जो वेष स्त्री से सहित होता है वह स्वापेक्ष है तथा लाल वस्त्र और मृगचर्म आदि की अपेक्षा रखता है वह परोपेक्ष है । रुद्र, विष्णु तथा तिलोत्तमा के मुख कमल को प्रघटित करने वाले चार मुखके धारक ब्रह्मा आदि रागो देव हैं तथा अनेक मनुष्यों का मांस भक्षण करने वाले १. मांस दक्षिणमुख भक्षकं । २. जैन सिद्धान्त की अपेक्षा कोई भी देव मांसभक्षक नहीं होता । यह कथा अन्य सिद्धान्त की अपेक्षा है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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