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________________ ६५० . षट्प्राभृते . [६. ७५पंचसु महव्वदेसु य पंचसु समिदोसु तीसु गुत्तोस् । जो मूढो अण्णाणी ण हु कालो भणई माणस्स ॥७५॥ पञ्चसु महाव्रतेसु य पञ्चसु समितिषु तिसृषु गुप्तिषु । यो मूढः अज्ञानी न हि कालो भणति ध्यानस्य ।।७५॥ (पंचसु महव्वदेसु य) पंचसु महाव्रतेषु च प्राणातिपातमृषावादस्तैन्यमैथुनपरिग्रहसर्वथापरित्यागो महानतमुच्यते एतेषु पंचसु महाव्रतेषु यो मूढश्चारित्रमोहबलवत्तरः । चकारादणव्रतानामपि अप्रतिपालको रात्रिभोजननियमरहितः चर्मजलवृततैलरामठास्वादन 'रतः (पंचसु समिदीसु तीसु गुत्तीसु) ईर्यासमितिः-करचतुष्टयं मार्गमवलोक्य गमनं, भाषासमितिः-आगमाविरुद्धभाषणं, एषणासमितिः-पूर्वोक्तषट्चत्वारिंशद्दोषरहिताहारग्रहणं, आदाननिक्षेपणासमितिः--ज्ञानोपकरणशौचोपकरणानां पूर्व दृष्ट्वा पश्चान्मयूरपिच्छैः प्रतिलेख्य ग्रहणं विसर्जन च आदाननिक्षे गाथार्थ-जो पांच महाव्रतों, पांच समितियों तथा तीन गुप्तियों के विषय में मूढ है तथा अज्ञानी है वही कहता है कि यह ध्यान का काल नहीं है अर्थात् इस समय ध्यान नहीं हो सकता ॥७५।। विशेषार्थ-हिंसा, झूठ, चोरो, मैथुन और परिग्रह इन पाँच पापोंका सर्वथा त्याग करना महाव्रत है । ये अहिंसा महावत आदिके भेदसे पांच हैं जो इन पांचों महाव्रतोंमें मूढ है अर्थात् अत्यन्त बलवान् चारित्र मोहके उदय से जो महाव्रत धारण करने में असमर्थ है । चकार से यह भी सूचित होता है कि जो अणुव्रतों का भी पालन नहीं करता है, रात्रिभोजन के त्यागका जिसके नियम नहीं है तथा चमड़े के पात्र में रखे हुए जल, घी, तैल और हींग के खाने से जो आसक्त है। चार हाथ प्रमाण मार्ग देखकर चलना ईर्यासमिति है, आगम के अविरुद्ध वचन बोलना भाषासमिति है, पूर्वोक्त छयालीस दोषोंसे रहित आहार ग्रहण करना एषणासमिति है, ज्ञान तथा शौच के उपकरणों को पहले देखकर पीछे मयूर को पिछी से परिमार्जन कर उठाना रखना आदाननिक्षेपण समिति है, तथा मलमूत्रादि का लोकसे अविरुद्ध एवं जीव रहित स्थान में छोड़ना प्रतिष्ठापनसमिति है। जो इन पाँचों समितियों में मूढ है अर्थात् विवेक से शून्य है तथा जो मनोगुप्ति वचनगुप्ति और कायगुप्ति के पालन करने में मूढ है साथ ही अज्ञानी अर्थात् जिनागम से बहिर्भूत है वही ऐसा कहता है कि यह १. स्वादन मठः म०। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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