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________________ षट्प्राभृते [६.६८-. जे पुण विसयविरत्ता अप्पा णाऊण भावणासहिया। छंडति चाउरंगं तवगुणजुत्ता ण संदेहो ॥६८॥ ये पुनः विषयविरक्ता आत्मानं ज्ञात्वा भावनासहिताः । त्यजन्ति चातुरङ्ग तपोगुणयुक्ता न सन्देहः ॥ ६८॥ (जे पुण विसयविरत्ता ) ये पुनरासन्नभव्यजीवा विषयेभ्यो विरक्ताः पसन ङ्मुखा विषयेषूत्पन्नविषयभावनाः। ( अप्पा गाऊण भावणासहिया ) आत्मानं ज्ञात्वा आत्मभावनासहिता भवन्ति । ( छंडति चाउरंग) ते पुरुषास्त्यजन्ति, किं ? चातुरंगं संसारं । ( तवगुणजुत्ता ण संदेहो) तप एव गुणस्तपोगुणस्तेन युक्ताः । अथवा तपो द्वादशभेदं गुणा अष्टाविंशतिमूलगुणा उत्तरगुणाश्च बहुभेदास्तयुक्ताः संसारं त्यजन्ति अत्र सन्देहो नास्ति संशयो न कर्तव्यः । उक्तं च गौतमेना महर्षिणा वदसमिदिदियरोषो लोचावस्सयमचेलमण्हाणं । खिदिसयणमदंतवणं ठिदिभोयणमेगभत्तं च ॥१॥ एदे खलु मूलगुणा समणाणं जिणवरेहि पण्णता । एत्य पमादकदादो अइचारादो नियत्तो हं ॥ २॥ गाथार्थ और जो विषयोंसे विरक्त होते हुए आत्मा, को जानकर उसकी भावना से सहित रहते हैं वे तप रूपी गुण अथवा तप और मूलगुणों से युक्त होकर चतुरङ्ग संसार को छोड़ते हैं ।। ६८.॥ विशेषार्थ-जो निकट भव्य जीव विषयों को विषके समान देखते हुए उनसे विरक्त रहते हैं तथा आत्मा को जानकर सदा उसके शुद्धबुद्धक स्वभाव को भावना रखते हैं वे तप रूप गुण अथवा बारह तप और अट्ठाईस मूलगुण तथा अनेक भेदोंसे युक्त उत्तर गुणों से सोहत होते हुए चतुर्गति रूप संसार का त्याग करते हैं इसमें संशय नहीं है। जैसा कि महर्षि गौतम ने कहा है बदसमिददिय-पांच महाव्रत, पांच समिति, पाँच इन्द्रियदमन, केशलोचन, छह आवश्योंका पालन, वस्त्र त्याग, स्नान त्याग और एकबार खड़े खड़े भोजन करना ये मुनियों के अट्ठाईस मूलगुण जिनेन्द्र भगवान् ने कहे हैं । इनमें प्रमादके कारण लगे हुए अतिचारों से में निवृत्त हुआ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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