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________________ -६.५८] मोक्षप्रामृतम् ६३३ (अच्यणं पि चेदा जो मण्णइ सो हवेइ अण्णाणी ) चेतयितारमात्मानं यः पुमान कापिलमतानुसारी अचेतनमात्मानं मन्यते स पुमान अज्ञानी ज्ञानवर्जितो मूों भवेत् । ( सो पुण णाणी भणिओ ) स पुमान पुनर्ज्ञानी भणितः । स कः ? ( जो मण्णइ चेयणे चेदा ) यः पुमान् चेतने चेतनद्रव्ये चेतयितारमात्मानं मन्यते । उक्तं च-- स यदा दुःखत्रयोपतप्तचेतास्तद्विघातकहेतुजिज्ञासोत्सेकितविवेकस्रोताः स्फाटिकाश्मानमिवानन्दात्मनमप्यात्मानं सुखदुःखमोहावहपरिवर्तेर्महदहंकारविवर्तश्च विशेषार्थ-सांख्य मतका अनुसरण करने वाला जो पुरुष चेतयिता अर्थात् आत्मा को अचेतन अर्थात् ज्ञान से शून्य मानता है वह अज्ञानी है और जो चेतन द्रव्य में चेतयिता-आत्मा को मानता है वह ज्ञानी है । भावार्थ-सांख्यों का कहना है कि पुरुष तो उदासीन चेतना स्वरूप है, नित्य है और ज्ञान प्रधान का धर्म है। इस मत में पुरुष कू उदासीन चेतना स्वरूप माना सो ज्ञान बिना जड़ ही हुआ । ज्ञानके बिना चेतन किस प्रकार हो सकता है ? ज्ञानको प्रधान का धर्म माना और प्रधान को जड़ माना तब अचेतन में चेतना मानने से अज्ञानी ही हुआ। नैयायिक और वैशेषिक गुण गुणी में सर्वथा भेद मानते हैं इसलिये इनके मतसे चेतना गुण जोवसे पृथक् है और चेतना गुण के पृथक् रहने से जीव अचेतन सिद्ध होता है अतः अचेतन को चेतन मानने के अज्ञानी दशा है। इसी प्रकार भूतवाती चार्वाक पृथिवी जल अग्नि और वायु के संयोग से चेतना की उत्पत्ति मानते हैं सो भूत तो जड़ हैं उनसे चेतना किस प्रकार उत्पन्न हो सकती है ? इसलिये अन्य मतवादियों का कथन अज्ञान से भरा हुआ है। यथार्थ में जीव द्रव्य ज्ञान गुण से तन्मय है इनमें गुण गुणी भाव अवश्य है परन्तु प्रदेश भेद नहीं है । ज्ञानगुण से तन्मय होनेके कारण जीव द्रव्य चेतन कहलाता है इसलिये चेतन को चेतन कहना अचेतन को अचे न कहना चेतन को अचेतन नहीं कहना और अचेतन को चेतन नहीं कहना ज्ञानी जीव को पहिचान है सांख्यों के यहाँ मुक्ति का स्वरूप इस प्रकार कहा गया है___स यवा तु-शारीरिक मानसिक और आधि भौतिक इन तीन प्रकार के दुःखों से इस जीवका चित्त निखार संतप्त रहता है परन्तु उन दुःखों के विषात के कारणों की जिज्ञासा से जब इसके विवेक का स्रोत प्रस्फुटित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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