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________________ -६.५२] मोक्षप्रामृतम् ६२५ भवति । ( जीवो हदि हु अणण्णविहो) जीव आत्मा भवति हु-स्फुटं अन्योन्यविधोऽपरापरप्रकारो भवति-स्त्रीभिर्योगे रागवान् भवति शत्रुभिर्योगे द्वेषवान् भवति पुत्रादिभिर्योगे मोहवान् भवतीति तात्पर्याथः । देव गुरुम्मि य भत्तो साहम्मि य संजदेसु अणुरत्तो। सम्मत्तमुम्वहंतो झाणरओ होइ जोई सो ॥५२॥ देवे गुरौ च भक्तः सामिके च संयतेषु अनुरक्तः। सम्यक्त्वमुद्वहन् ध्यानरतः भवति योगी सः ॥५२॥ ( देव गुरुम्मि य भत्तो ) देवे गुरौ च भक्तो विनयपरः । ( साहम्मि य संजदेसु अणुरत्तो ) सामिकेषु समानधर्मेषु, जैनेषु संयतेषु महामुनिषु, अनुरक्तोऽकृत्रिमस्नेहवान् वात्सल्यपरः । ( सम्मत्तमुव्वहंतो) सम्यक्त्वं सम्यग्दर्शनमुद्वहन् मूर्धनि स्थापयन् । ( शाणरओ होइ जोई सो ) एवं विशेषणत्रयविशिष्टो योगी अष्टाङ्गयोगनिपुणो मुनिर्व्यानरतो भवति ध्यानानुरागी भवति सः । विपरीतस्य ध्यान न रोचत इत्यर्थः । तथा चोक्तंअन्य रूप हो जाता है उसी प्रकार यह जीव स्वभाव से रागादि वियुक्त है अर्थात् रागद्वेष आदि विकार भावों से रहित है परन्तु परद्रव्य अर्थात् कर्म नोकर्म रूप पर पदार्थों के संयोग से अन्यान्य प्रकार हो जाता है। इस अर्थमें वियुक्त शब्दके प्रचलित अर्थको बदल कर 'विशेषेण युक्ती वियुक्तः अर्थात् साहितः' ऐसी जो क्लिष्ट कल्पना करनी पड़ती है उससे बचाव हो जाता है। ___ गाथार्थ-जो देव और गुरुका भक्त है, सहधर्मी भाई तथा संयमो जीवोंका अनुरागी है तथा सम्यक्त्व को ऊपर उठाकर धारण करता है अर्थात् अत्यन्त आदरसे धारण करता है ऐसा योगी ही ध्यान में तत्पर होता है ॥५२॥ ___ विशेषार्थ-यहाँ कैसा मुनि ध्यानमें तत्पर होता है इसका वर्णन करते हुए आचार्य लिखते हैं कि जो देव-अरहंत, सिद्ध और गुरु-आचार्य उपाध्याय साधुका भक्त है अर्थात् उनकी विनय करने में तत्पर रहता है, सहधर्मी-जैनों में तथा संयम के धारक महामुनियों में अनुरक्त रहता है अर्थात् अकृत्रिम स्नेह से युक्त हो वात्सल्य भाव प्रकट करता है और सम्यक्त्व को सिर पर धारण करता है अर्थात् बड़े आदर से उसकी आराधना करता है ऐसा योगी-अष्टाङ्गयोग में निपुण मुनि ही ध्यान में रत होता है । इससे विपरीत पुरुष को ध्यान नहीं रुचता है। जैसा कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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