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________________ -५.९५] भावप्रामृतम् संवर उच्यते । स संवरः 'स गुप्तिसमितिदशधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रभवति । तपसा निर्जरा च भवति सर्वरश्च भवति। सर्वकर्मक्षयो मोक्षः कथ्यते एते नवपदार्थाः, एतेषां विस्तर आगमाद्वेदितव्यः । सप्ततत्वानि पुण्यपापरहितानि ज्ञातव्यानि । ( जीवसमासाई मुणी ) हे मुने ! जीवसमासान् चतुर्दशसंख्यान् त्वं भावय । अथ के ते चतुर्दशजीवसमासा इति चेत् ? बादरसुहमगिदिय वितिचउरिदिय असणि सण्णी यं । पज्जत्तापज्जत्ता भूदा इय चोहसा होति ॥ १॥ विस्तरभेदैर्जीवसमासा अष्टानवतिर्भवन्ति । तत्रेयं गाथा थावर वेयालीसा दो सुर दो नरय तिरिय चउतीसा । नव विउले नव मणुए अडणउदी जीवठाणाणि ॥१॥ और जो शुभ कार्यों से आत्मा की रक्षा करे अर्थात् दूर रक्खे उसे पाप कहते हैं ] कर्मोके एक-देश क्षयको निर्जरा कहते हैं, तपसे निर्जरा और संवर दोनों होते हैं । समस्त कर्मोका क्षय मोक्ष कहलाता है । ये नौ पदार्थ हैं इनका विस्तार आत्मा से जानना चाहिये । इन्हीं नौ पदार्थों में से पुण्य और पाप को अलग कर देनेपर शेष सात पदार्थ सात तत्व कहलाते हैं। इस विवक्षा में पुण्य और पापका आस्रव तथा बन्ध तत्व में समावेश हो जाता है, अतः उनकी अलग से गणना नहीं की गई है । संक्षेप से जीवोंकी समस्त जातियों के परिगणन को जीव-समास कहते हैं। संक्षेप से उसके चौदह भेद होते हैं, जो इस प्रकार हैं... बावर सुहुमे–१ बादर एकेन्द्रिय, २ सूक्ष्म एकेन्द्रिय, ३ दोइन्द्रिय, ४ तीन इन्द्रिय ५ चार इन्द्रिय, ६ असैनी पञ्चेन्द्रिय और ७ सैनी पञ्चेन्द्रिय इस सात युगलोंके पर्याप्त और अपर्याप्त की अपेक्षा दो भेद होते हैं, अतः सबके मिलाकर चौदह जोवसमास होते हैं। विस्तार की अपेक्षा अठानवे जीवसमास होते हैं। उनके परिगणन के लिये यह गाथा उपयुक्त है. थावर-स्थावरोंके ४२, देवोंके २, नारकियों के २, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों के ३४, विकलत्रय के ९ और मनुष्यों के ९ सब मिलाकर ९८ जीवसमास होते हैं। १. सर्वप्रतिषु स शब्दो वर्तते । २. सर्वप्रतिषु पुण्यपापयोलक्षणं नास्ति तदनेन प्रकारेण शेयं । पुनान्यात्मानं तत्पुण्यं । पाति राति भावात्मानं सत्तापं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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