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________________ ३७४ षट्प्राभते [५. ५अंगाई दस य दुण्णि य चउदसपुव्वाइं सयलसुयणाणं। . पढिओ अ भव्वसेणो ण भावसवणतणं पत्तो॥५२॥ अङ्गानि दश च द्वे च चतुर्दशपूर्वाणि सकलश्रुतज्ञानम् । पठितश्च भव्यसेनः न भावश्रमणत्वं प्राप्तः ॥५२॥ ( अंगाई दस दुणि य ) अंगानि दश च द्वे च अंगे । ( चउदसपुब्वाई ) चतु. दशपूर्वाणि ( सयलसुयणाणं ) सकलश्रुतज्ञानं । ( पढिओ अ.) पठितश्च । (भब्वसेणो ) भव्यसेननामा मुनिः । ( ण भावसवणत्तणं पत्तो ) भावश्रमणत्वं न प्राप्तः । जैनसम्यक्त्वं विनाऽनन्तसंसारी बभूवेति भावार्थः । अत्र भव्यसेनो मुनिरेकादशाङ्गानि । शब्दतोऽर्थतश्च पठितस्तद्वलेनैव द्वादशस्याङ्गस्य चतुर्दशपूर्वाणां चार्थपरिज्ञायकत्वात् श्री कुन्दकुन्दाचार्येण सकलश्रुतेमधीमं प्रोक्तमिति ज्ञातव्यं सकलश्रुतेwwwimmmmmmmmmmm गाथार्थ-भव्यसेन मुनिने बारह अङ्ग तथा चौदह पूर्व रूप समस्त श्रुतज्ञान को पढ़ा फिर भी वह भाव श्रमण अवस्था को प्राप्त नहीं हो सका ॥५२॥ विशेषार्थ-भव्यसेन नामक मुनि, द्वादशाङ्ग तथा चतुर्दश पूर्व रूप सकल श्रुतका पाठी होने पर भी भाव-मुनि नहीं हो सका अर्थात् जैन सम्यक्त्व के बिना अनन्त संसार का पात्र रहा। यहां भव्यसेन मुनि ने ग्यारह अङ्गोंको तो शब्द तथा अर्थ दोनों रूपसे पढ़ा था और चौदह पूर्वो को वह अर्थ मात्रसे जानता था इसी दृष्टिसे कुन्दकुन्द स्वामी ने उसे सकल श्रुतका पाठी कह दिया है, ऐसा जानना चाहिये। क्योंकि समस्त श्रुतको पढ़ने वाला पुरुष संसार में नहीं पड़ता, ऐसा आगमका वचन है । भव्यसेनकी कथा इस प्रकार है भव्यसेन की कथा विजयाध पर्वत की दक्षिण श्रेणीमें मेघ-कूटपत्तन नामका नगर है. उसमें सुमति महादेवीका पति चन्द्रप्रभ नामका राजा रहता था। वह चन्द्रशेखर नामक पुत्रके लिये राज्य देकर परोपकार के अर्थ तथा जिनदेव और जिन मुनियों की वन्दना एवं भक्तिके अभिप्राय से कुछ विद्याओंको धरता हुआ दक्षिण मथुरामें आकर मुनि गुप्ताचार्यके समीप क्षुल्लक हो गया। वह एक समय जिन मुनियोंकी वन्दना और भक्तिके लिये उत्तर मथुरा की ओर जाने लगे। चलते समय उन्होंने श्रीमुनि गुप्त आचार्यसे पूछा कि किससे क्या कहना है ? गुप्तमुनिराज ने कहा कि सुब्रत मुनिके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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