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________________ ३६२ षट्प्राभूते - [५. ५१ इवोदष्यति । सर्वसन्तापकारी तीक्ष्णकरोऽनवस्थितः क्रूरो दिवाकुवलयध्वंसी तदा सूर्यः कुनृपस्योपमां धरिष्यति । नित्यादयो बुधाधीशोऽखण्ड विशुद्धमण्डलः प्रवृद्धः पद्माल्हादी सुराजनं वाऽयंमाजेष्यति । अस्य कुमारस्य बान्धवा भववैमुख्यं विज्ञाय 'कुणिकमहाराजश्रेणयोऽष्टादशापि देवोऽनावृतश्च सर्वे संगम्य मंगलजलरभिषेक करिष्यन्ति । अथ कास्ता अष्टादशश्रेणयः-सेनापतिर्गणको राजश्रेष्ठी दण्डाधिपो मंत्री महत्तरो बलवत्तरः चत्वारो वर्णः चतुरंग बलं पुरोहितोऽमात्यो महामात्य भी उसकी प्राप्तिको सख जान कर सभी विषय लंपट दुबंद्धि मनुष्य जीवन व्यतीत करते हैं परन्तु जो बुद्धिमान् है वह कठिन तप किये तथा परिग्रह को छोड़े बिना कैसे रह सकता है ? __इस प्रकार जम्बू कुमार के वचन सुन उसकी माता, चारों कन्याएँ और चोर संसार शरीर तथा भोगों से अत्यन्त वैराग्य को प्राप्त हो जावेंगे। उस समय अन्धकार को नष्ट कर चकवा को चकवो के साथ मिलाना और अपनी किरणों से कमल को अनुरञ्जित करता हुआ सूर्य उदयाचल पर उस तरह उदित होगा जिस तरह कि तप पर जम्बू कुमार। वह सूर्य चकवा को चकवी के साथ इस तरह मिला रहा था, जिस तरह कि कुमारको दीक्षाके साथ और अपनी किरणों से कमल को उस तरह अनुरोञ्जत कर रहा था जिस तरह जम्बू कुमारके मनको । उस समय सूर्य खोटे राजाकी उपमा को धारण कर रहा था क्योंकि जिस प्रकार खोटा राजा सर्व-संतापकारी होता है-सबको दुःख देने वाला होता है उसी प्रकार सूर्य भी सर्व संताप-कारी थी-सबको गर्मी पहुंचाने वाला था, जिस प्रकार खोटा राजा तीक्ष्ण कर-अत्यधिक टैक्स लगाने वाला होता है उसी प्रकार सूर्य भी तीक्ष्ण कर-उष्ण किरणों वाला था, जिस प्रकार खोटा राजा अनवस्थित होता है-चञ्चल-बुद्धि होता है उसी प्रकार वह सूर्य भी अनवस्थित था-सदा एकसा न रहने वाला था, जिस प्रकार खोटा राजा कर-स्वभाव का दुष्ट होता है उसी प्रकार सूर्य भी करअत्यन्त उष्ण प्रकृति वाला था और जिस प्रकार खोटा राजा दिवा कुवयलध्वंसोदिन में पृथिवी भण्डल को नष्ट करने वाला होता है उसी प्रकार सूर्य भी दिवा कुवलयध्वंसो दिन में नीलकमलों को निमोलित करने १. कुणिक म० क०। २. दानाध्यक्षः (क० टि०) ३. तलवरः (क. टि.)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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