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भावप्राभृतम्
प्तिर्भविष्यति । तत्कथं चेत्कथयिष्यामि । अस्माद्दिनात् सप्तमे दिनेऽयं ब्रह्मेन्द्रः स्वर्गादम्येत्यास्मिन् राजगृहे नगरेऽहद्दासेभ्यस्य प्रियभार्याजिनदास्यां गजं सरोवर शालिवनं निघू मानलं प्रज्वलज्ज्वालं स्वर्गकुमारसमानीयमानजम्बूफलानि च स्वप्ने दर्शयित्वा महाद्युतिजंम्बनामाऽनावृ तदेवाप्तपूजोऽतिविख्यातो विनीतः सुतो भवि - ष्यति । यौवनारम्भेऽपि निर्विक्रियो भावी । तस्मिन् जम्बूस्वामियौवनकाले श्रीवीरभट्टारकः पावापुरे मुक्ति यास्यति तस्मिन्नेव समये मम केवलज्ञानमुत्पत्स्यते सुधर्म - गण घरेण सह संसाराग्नितप्तानां भव्यप्राणिनां धर्मामृतादकेनाल्हादं करिष्यन्निदमेव राजगृहपत्तनमागत्यास्मिन्नेव विपुलाचलेऽहं स्थास्यामि । तत्समाकर्ण्य चेलनीसुतः कुणिको नृपः सर्वपरिवारेण समागत्य मां सुधमं च पूजयित्वा दानशीलोपवासादिकं धर्मं ग्रहीष्यति । तेन सहागता जम्बूनामा निर्वेदं प्राप्य दीक्षाग्रहणोत्सुको भविष्यति । तं कुटुम्बं वदिष्यति स्तोकेषु वर्षेषु गतेषु स्वया सह वय सर्वेऽपि दीक्षां ग्रहीष्यमि इति । तेन प्रोक्तं सोढुमशक्तुवन्निराकर्तुं च तदक्षमः पुरमायाम्यति । तस्य मोहमुत्पादयितुं सुखबन्धनं विवाह आरप्स्यते तेन कुटुम्बवर्गेण बान्धवा हि श्रेयसो विघ्नाः । सागरदत्तपद्मावत्योः सुता श्रियोत्कृष्टा सुलक्षणा पद्मश्री, कुवेरदत्तकन मालयोः सुता सुलोचना कनकश्रीः वैश्रवणदत्तविनयवत्योबूंदा
पद्मावती की पुत्री, लक्ष्मी से उत्कृष्ट, अच्छे लक्षणों वाली पद्म श्री कुबेर दत्त और कनक मालाकी पुत्री सुन्दर लोचनोंसे युक्त कनक श्री, वैश्रवण दत्त और विनयवतीकी पुत्री, मृग नेत्री तथा सुन्दरी विनय श्री और उसी वैश्रवण दत्त की दूसरी स्त्री धन श्री की पुत्री रूप - श्री इन चारोंको विधिपूर्वक विवाह कर समीचीन रत्नोंमय दीपोंको कान्तिसे अन्धकाररहित शयनागार में नाना रत्नों के समोचीन चूर्ण निर्मित रङ्गावली से सुशोभित एवं नाना प्रकार के फूलों के उपहार से सहित पृथिवी तल पर बैठेगा ।
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सुरम्यदेश सम्बन्धी पोदनपुर के राजा विद्युद्राज और उसकी रानी विमलमति का पुत्र विद्युत्प्रभ किसी कारण अपने बड़े भाई से कुपित होकर पांचसौ योद्धाओं के साथ अपने नगर से निकल पड़ा था और उसने अपना विद्युच्चोर नाम रक्खा था । वह पापो मनुष्यों में सबसे आगे. स्मरणीय था, दुष्ट लोगोंके द्वारा वन्दना करने योग्य था, दुर्गुणी था, • अनुत्सुक था एवं स्वभाव से तीक्ष्ण था। चौर शास्त्र के उपदेश से वह मन्त्रतन्त्र के सब विधान सीख गया था अतः शरीर को अदृश्य बनाना तथा बन्द किवाड़ों को खोलना आदि कार्योंका अच्छा जानकार था जिस समय बम्ब कुमार शयनागार में अपनी नव विवाहित स्त्रियोंके साथ बैठा उसा
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